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a maha संज्ञी-असंझीश्रुत
SANJNI AND ASANJNI SHRUT ७५ : से किं तं सण्णिसुअं? सण्णिसुअंतिविहं पण्णत्तं, तं जहा-कालिओवएसेण हेऊवएसेणं दिट्ठिवाओवएसेणं। से किं तं कालिओवएसेणं?
(१) कालिओवएसेणं-जस्स णं जत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिन्ता, वीमंसा, से णं सण्णीति लब्भइ।
जस्स णं नत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिन्ता, वीमंसा, से णं असण्णीति लब्भइ, से तं कालिओवएसेणं। (२) से किं तं हेऊवएसेणं?
हेऊवएसेणं-जस्स णं अत्थि अभिसंधारणपुव्विआ करणसत्ती, से णं सण्णीत्ति लब्भइ। ___जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुव्विआ करणसत्ती, से णं असण्णीत्ति लब्भइ। से तं हेऊवएसेणं।
(३) से किं तं दिट्टिवाओवएसेणं?
दिडिवाओवएसेणं सण्णिसुअस्स खओवसमेणं सण्णी लब्भइ। असण्णिसुअस्स म खओवसमेणं असण्णी लब्भइ। से तं दिविवाओवएसेणं, से तं सण्णिसुअं, से तं,
असण्णिसु। ____ अर्थ-प्रश्न-संज्ञीश्रुत कितने प्रकार का है ? ___उत्तर-साश्रुत तीन प्रकार का बताया है-(१) कालिकी उपदेश से, (२) हेतु उपदेश * से, और (३) दृष्टिवाद उपदेश से।
प्रश्न-कालिकी उपदेश से किस प्रकार का है ?
उत्तर-जिसे ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता तथा विमर्श होते हैं उस प्राणी को # संज्ञी कहते हैं। जिसे ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता तथा विमर्श नहीं होते उस + प्राणी को असंज्ञी कहते हैं। उनसे सम्बधित ज्ञान कालिकी उपदेश से संज्ञीश्रुत अथवा
असंज्ञीश्रुत कहलाता है।
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श्रुतज्ञान (३४५ )
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