Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 445
________________ H ) ) ) ) ) ) ) ) । 卐 ) ) ) ) 匈牙岁岁男寄寄场步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步54 5 there are equal number of thousand Prakirnaks to his credit. Si The same is true for a Pratyekabuddha. This concludes the description of Kalik shrut. This concludes 41 the description of Avashyak vyatirikt shrut. This concludes the 卐 description of Anang-pravishta shrut. विवेचन-कालिक सूत्रों का संक्षिप्त परिचय उत्तराध्ययन सूत्र में ३६ अध्ययन हैं। भगवान महावीर के अंतिम उपदेश इसमें संकलित हैं। ॐ इसमें सैद्धान्तिक, नैतिक, सुभाषितात्मक तथा कथात्मक वर्णन सम्मिलित हैं। इसका हर अध्ययन अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। निशीथ सूत्र में पापों के प्रायश्चित्त का विधान विस्तार से वर्णित है। जिस प्रकार रात्रि के अन्धकार को सूर्य का प्रकाश दूर करता है उसी प्रकार अतिचार (संयम-विरुद्ध आचरण) के अन्धकार को प्रायश्चित्त दूर करता है। यही इस सूत्र का विषय है। ___अंगचूलिका सूत्र-यह सूत्र आचारांग आदि अंगों की चूलिका है। चूलिका का अर्थ है कहे या अनकहे विषयों का संग्रह। वर्गचूलिका सूत्र-यह अंग सूत्रों में रहे वर्गों की चूलिका है। जैसे अंतकृद्दशासूत्र के आठ वर्ग हैं उनकी चूलिका। विवाहचूलिका-यह व्याख्याप्रज्ञप्ति अथवा भगवतीसूत्र की चूलिका है। __ वरुणोपपात-इस सूत्र का पाठ किए जाने पर वरुणदेव उपस्थित होकर सुनते हैं तथा पाठकर्ता मुनि को वरदान मांगने को कहते हैं। मुनि के अनिच्छा प्रकट करने पर वे उस निस्पृह , व संतोषी मुनि को वन्दन करके चले जाते हैं। इस सूत्र का विषय यही है। उत्थानश्रुत-इसमें उच्चाटन (मंत्र द्वारा अशान्ति फैलाना) का वर्णन है। समुत्थानश्रुत-यह उच्चाटन श्रुत का विलोम है। इसके प्रभाव से शान्ति स्थापित होती है। नागपरिज्ञापनिका-इसमें नागकुमारों का वर्णन है। कल्पिका-कल्पावतंसिका-इनमें सौधर्म आदि कल्पों में विशेष तप के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले देव-देवियों का वर्णन है। ___ पुष्पिता-पुष्पचूला-इनमें विमानवासी देवों के वर्तमान तथा पूर्वभवों का जीवनवृत्त है। वृष्णिदशा-इसमें अन्धकवृष्णि कुल में उत्पन्न हुए दस महान् व्यक्तियों से सम्बन्धित धर्मचर्या, गति, संथारा तथा सिद्धत्व प्राप्त करने का उल्लेख है। इसके दस अध्ययन हैं। प्रकीर्णक-अर्हत् द्वारा उपदिष्ट श्रुत के आधार पर श्रमण जिन ग्रन्थों की रचना करते हैं उन्हें प्रकीर्णक कहते हैं। भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक इस परम्परा में असंख्य ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) श्री नन्दीसूत्र ( ३७४ ) Shri Nandisutra 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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