Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 435
________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 $%%%%% %%%%%%%%紧压实况 % %%%%%%%%生命 पायाक्षर PARYAYAKSHAR लोकाकाश और अलोकाकाश दोनों में जितने भी आकाश प्रदेश हैं उनको उन्हीं से अनन्त बार गुणा करें और उसमें प्रत्येक आकाश प्रदेश में रहे जो अनन्त अगुरु लघु पर्याय हैं उन्हें जोडें ॥ 卐 तब जो योगफल आता है उसे पर्यायाक्षर कहते हैं। अथवा जितने पर्याय संसार में विद्यमान हैं। केवलज्ञानी इन सभी पर्यायों को जानते हैं। ___ ज्ञान की अन्यतम स्थिति को समझने के लिए संख्याओं का सहारा लेना पड़ता है। ६५,५३६ ॥ को पण्णट्ठी कहते हैं (२१६)। पण्णट्ठी को पण्णट्ठी से गुणा करने पर जो संख्या आती है उसे वादाल कहते हैं-४,२९,४९,६७,२९६ अथवा २३२। वादाल को वादाल से गुणा करने से जो संख्या आती है उसे एकट्ठी कहते हैं-१,८४,४६,७४,४0,७३,७०,९५,५१,६१६ अथवा २६४ केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदों में एक कम एकट्ठी का भाग देने से जो संख्या आती है उतने अविभाग प्रतिच्छेदों के समूह को अक्षर कहते हैं। इस अक्षर प्रमाण में अनन्त का भाग देने से क जितने अविभाग प्रतिच्छेद उतने पर्यायज्ञान में पाये जाते हैं। सभी जीवों में इतनी सूक्ष्म पर्याय ज्ञान की क्षमता खुली रहती है जिसे श्रुतज्ञान का सूक्ष्मतम __ अंश कहा जा सकता है। यदि वह भी अनन्त कर्म वर्गणाओं से ढक जावे तव जीव अजीव में । परिणत हो जायेगा। परन्तु ऐसा होता नहीं है। जैसे सघनतम काली घटा में आच्छादित हो जाने पर भी चन्द्र-सूर्य की आभा का सर्वथा लोप नहीं होता। उसी प्रकार अनन्त ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म परमाणुओं से प्रत्येक आत्म-प्रदेश ढका होने पर भी चेतना का सर्वथा अभाव नहीं होता। सूक्ष्म निगोद में रहे हुए जीव में भी श्रुत कुछ न कुछ मात्रा में रहता ही है। The square of the total number of space points in the inhabited and uninhabited space when added to the infinite gross and subtles modes (variables) existing within each and every space point giveski the number that is called Paryayakshar. It means all the modesti (alternatives and variables) existing in the universe. Kewal-jnants knows all these. To understand the ultimate state of knowledge it becomessi necessary to take help of numbers. The number 65,536 or 216 issi called pannatthi. The square of pannatthi is called vadal (4,29,49,67,296 or 232). The square of vadal is called ekatthis (1,84,46,74,40,73,70,95,51,616 or 264). Suppose Keval-jnana is mades up of a very large number of indivisible units or prime numbers. When this number is divided by one less than ekatthi, the resulting number of such indivisible units is called akshar. An infinitesimal fraction of akshar is equal to the smallest unit of paryaya-jnana. Q%s$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 . श्री नन्दीसूत्र (३६४ ) Shri Nandisutra OES5555555555555555555555se Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542