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LE LE LE LE LE LE LEEEEE fraction of the akshar (shrut-jnana) is ever open or unveiled. If this also gets veiled the being will turn into non-being or life will turn into matter. No matter how dense is the cover of clouds the radiance of the sun and the moon does not completely vanish.
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This concludes the description of saadi saparyavasit and anaadi aparyavasit.
विवेचन-गणिपिटक अर्थात् अर्हत् द्वारा प्रतिपादित धर्मग्रन्थ अथवा तीर्थंकर के वचन व्यवच्छित्तिनय अथवा पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से सादि- सान्त है अर्थात् पर्यायों की दृष्टि उनका आदि और अन्त दोनों हैं। परन्तु अव्यवच्छित्तिनय अथवा द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा अनादि-अनन्त है अर्थात् अपने मूल ज्ञान रूप में वह अनादि अनन्त है।
इस दृष्टिकोण के आधार पर इसके चार विकल्प बताये हैं
(१) द्रव्यतः - एक जीव की अपेक्षा से सम्यक् श्रुत सादि- सान्त है । जीव को जब सम्यक्त्व की
प्राप्ति होती है तब उस जीव के संदर्भ में सम्यक्श्रुत की आदि होती है। जब वह पहले अथवा
तीसरे गुणस्थान में प्रवेश करता है तब पुनः मिथ्यात्व का उदय होता है। प्रमाद, मनोमालिन्य,
तीव्र वेदना अथवा विस्मृति के कारण वह श्रुत लुप्त हो जाता है । अन्य परिस्थिति में विकास प्राप्त कर जब केवलज्ञान का उदय होता है तब भी श्रुत लुप्त हो जाता है। यह सम्यक् श्रुत का अन्त होता है।
अनेक जीवों की अपेक्षा से सम्यक्श्रुत आदि अनन्त है। कहीं न कहीं कोई न कोई सम्यक् श्रुत को धारण करने वाला सदा विद्यमान रहता है। ऐसी कोई परिस्थिति न कभी थी, है, न होगी जब सम्यक् श्रुत को धारण करने वाला कोई भी जीव इस सृष्टि में न हो ।
(२) क्षेत्रत: - पाँच भरत और पाँच ऐरावत इन दस क्षेत्रों की अपेक्षा से सम्यक् श्रुत! सादि-सान्त है। अवसर्पिणी काल के सुक्खम- दुक्खम आरे के अंत में और उत्सर्पिणी काल के दुक्खम- सुक्खम आरे के आरंभ में तीर्थंकर भगवान सर्वप्रथम धर्म संघ की स्थापना करने के लिए सम्यक् श्रुत की प्ररूपणा करते हैं। यह श्रुत की आदि है। दुक्खम-दुक्खम आरे में श्रुत व्यवच्छेद हो जाता है। यह श्रुत का अन्त है । पाँच महाविदेह क्षेत्र की अपेक्षा से सम्यक् श्रुत अनादि - अनन्त है क्योंकि इन क्षेत्रों में वह सदा विद्यमान रहता है।
(३) कालतः - उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी कालक्रम जहाँ प्रभावी है वहाँ सम्यक् श्रुत सादि - सान्त
है । पाँच भरत व पाँच ऐरावत क्षेत्रों में काल का यह क्रम प्रभावी है। जहाँ उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालक्रम प्रभावी नहीं हैं, वहाँ ऊपर बताये कालक्रम के कारण सम्यक्श्रुत सदा विद्यमान रहता है, अर्थात् अनादि - अनन्त है । महाविदेह क्षेत्रों में यह कालक्रम प्रभावी नहीं है।
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5 श्री नन्दीसूत्र
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