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(१) अर्हत-जिन्होंने राग-द्वेष, काम, क्रोध आदि आत्मिक दोषों की तथा धनघाति कर्मों की ॐ सत्ता को निर्मूल कर आत्मा को निष्कलुष कर दिया है और पुनर्जन्म के निमित्त को मिटा दिया है वे अहंत हैं।
(२) भगवन्त-जिन महान आत्मा में सम्पूर्ण ऐश्वर्य, निःसीम शक्ति, त्रिलोकव्यापी यश, परम के तेजस्विता, विशुद्ध चैतन्य धर्म, निराग्रह करुणा के चिरन्तन प्रवाह की और प्रेरित अथक परिश्रम
आदि सर्व कल्याणकारी महागुण विद्यमान हों वे भगवन्त हैं। 9 (३) उत्पन्न ज्ञान-दर्शन-धारक-जिनमें ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ हो। ऐसे प्रत्यक्ष ज्ञान-दर्शन के ।
धारक। ज्ञान और दर्शन किसी अन्य स्रोत से भी प्राप्त हो सकता है-जैसे अध्ययन, श्रवण, ॐ अभ्यास आदि। किन्तु ऐसा ज्ञान परोक्ष होता है, स्वानुभूति प्रत्यक्ष नहीं।
(४) तीन लोकों में समादृत तथा नमस्कृत-जो अपने निष्कलुष प्रत्यक्ष ज्ञान के प्रकाश से ॐ त्रिलोक को आलोकित करने के कारण आदरपूर्वक देखे जाते हैं तथा अपनी इस निराग्रह अनुकम्पा के कारण समस्त लोक के वन्दनीय तथा पूजनीय हैं।
(५) त्रिकालज्ञ-जो भूत, भविष्य, वर्तमान को किसी साधन अथवा निमित्त से नहीं किन्तु आत्म-प्रत्यक्ष रूप में जानने-देखने की क्षमता रखते हैं।
(६) सर्वज्ञ-जो प्रत्येक वस्तु को प्रत्येक दृष्टिकोण से प्रत्यक्ष जानते हैं। जिनका ज्ञान सर्वव्यापी है।
(७) सर्वदर्शी-जो प्रत्येक वस्तु को प्रत्येक दृष्टिकोण से प्रत्यक्ष देखने की क्षमता रखते हैं। जिनकी दृष्टि और दृष्टिकोण सर्व व्यापी है।
इन सात विशेषणों से सम्पन्न महापुरुष ही सम्यक श्रुत के प्रणेता होते हैं। इनके आप्त वचनों को गणधरों ने बारह पेटियों (पिटक) में संजो लिया था। अतः इन्हें गणिपिटक नाम से जाना
जाता है। सम्यक् श्रुत को पुरुष रूप में देखें तो ये बारह पिटक उसके अंग रूप हैं। इसी कारण है + इन्हें द्वादशांग कहा जाता है। 卐 जो महापुरुष इस सम्पूर्ण सम्यक् श्रुत का धारण कर लेते हैं--उनके वचन भी सम्यकश्रुत होते 卐 卐 हैं। इस श्रेणी में ग्यारह अंग तथा बारहवें अंग के चौदह पूर्व सम्मिलित हैं। ऐसी मान्यता है कि
ग्यारह अंग तथा सम्पूर्ण दस पूर्वो के धारक महापुरुषों के वचन भी सम्यक् श्रुत होते हैं। दस से ॐ कम पूर्वो के जानकार के वचन सम्यक् श्रुत हो भी सकते हैं और नहीं भी। इसका कारण यह ॥ 卐 माना जाता है कि दस से चौदह पूर्वो के जानकार निश्चिन्त रूप में सम्यक् दृष्टि होते हैं। इससे
कम के जानकार आवश्यक रूप में सम्यक् दृष्टि नहीं होते। अर्थात् मिथ्या दृष्टि जीव भी दस पूणे से कुछ कम का अध्ययन कर सकते हैं।
Elaboration-Samyak shrut means the pure and direct knowledge of the true reality. Seven adjectives have been used here 5 for the propagators of such knowledge
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श्रुतज्ञान
Shrut-Jnanay
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