Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 393
________________ म है। फिर वह ईहा में प्रवेश करता है और तभी जान पाता है कि वह शब्द किसका है। ॐ फिर वह अवाय में प्रवेश करता है और उस सूचना को ज्ञानरूप में परिणत करता है फिर ॐ वह धारणा में प्रवेश करता है और उस ज्ञान को संख्यात या असंख्यात काल तक के लिए धारण करता है। 63. Question-What is this example of mallak (the bowl)? Answer—The example of the caller is like this — If a man lifts a fresh earthen bowl from a potter's kiln and pours a drop of water in it, the drop disappears (soaked into the + bowl). He then adds another drop and that too disappears. This way when he keeps on adding drops there will be one drop that will make the bowl wet, one drop that will stay a drop, one drop that will fill the pot, and one drop that will spill out. In the same way by adding continuously when that vyanjan 4 (consonant or sound) is filled with (formed by) infinite particles, 41 then the person utters 'ya', but he is not certain about the # source of that sound. After this he enters the state of iha and 4 then only he knows about the source of sound. Then he enters $1 the state of avaya and converts that information into 4 knowledge. After this he enters the state of dharana and absorbs the knowledge in his memory for countable or 4 uncountable period of time. विवेचन-व्यंजनावग्रह का एक ओर सटीक उदाहरण है यह। मिट्टी का कोरा प्याला जब तक पूरा गीला नहीं हो जाता तब तक पानी सोखता रहता है। ऐसे प्याले में जब बूंद-बूंद पानी डाला , जाए तो प्रत्येक बूंद सोखी जाने से नष्ट होती रहती है। यह क्रम तब तक चलता है जब तक पात्र को पूरी तरह गीला कर देने वाली अन्तिम बूंद नहीं डाली जाती। इसके बाद वाली बूँद ही उस पात्र में बूंद रूप में ठहरती है। बूंद डालने का क्रम चलता रहे तो पात्र धीरे-धीरे भरने में लगता है और एक बूंद ऐसी पड़ती है जो पात्र को पूरा भर देती है। इसके बाद वाली बूंद पात्र 5 से छलक जाती है। ॐ. इसी प्रकार पुकार से निकली ध्वनि के पुद्गल एक-एक समय में कान में प्रवेश पाते हैं और श्रोत्रेन्द्रिय में टकराते रहते हैं। असंख्यात समय तक यह क्रिया चलते रहने पर कान इन पुद्गलों से परिव्याप्त हो जाते हैं तब उस पुरुष का व्यंजनावग्रह पूर्ण होता है और वह 'हुंकार' करता है। इससे पूर्व जब तक वे पुद्गल प्रवेश पाते रहते हैं तब तक उसे अव्यक्त ज्ञान होता रहता है यह 9 क्रिया ही व्यंजनावग्रह है। ॐ श्री नन्दीसूत्र ( ३२४ ) · Shri Nandisutra 45 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 卐 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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