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IV. A person with some name gets an indistinct taste. He receives it as 'some taste' but is not aware of the exact taste or 4 its source. He then enters the state of iha and then only he fi
knows what taste it is. After this he enters avaya and
understands the information. Now he enters dharana and 5 4 absorbs the information into his memory for countable or uncountable period of time.
V. A person with some name gets an indistinct touch. He receives it as 'some touch' but is not aware of the exact touch or
its source. He then enters the state of iha and then only he 4 knows what touch it is. After this he enters avaya and fi
understands the information. Now he enters dharana and
absorbs the information into his memory for countable or fi uncountable period of time.
VI. A person with some name sees an indistinct dream. He i receives it as 'some dream' but is not aware of the exact dream
or its source. He then enters the state of iha and then only he 5 knows what dream it is. After this he enters avaya and is $1 understands the information. Now he enters dharana and 41
absorbs the information into his memory for countable or uncountable period of time.
विवेचन-उपरोक्त विवरण के अनुसार व्यंजनावग्रह चक्षु तथा मन को छोड़ अन्य इन्द्रियों में 卐 होता है। इन दोनों में अर्थावग्रह होता है। नोइन्द्रिय का अर्थ मन है, जिसकी क्रिया मनन या
चिन्तन है। इसके संबंध में अवग्रह को स्पष्ट करने के लिए स्वप्न का उदाहरण दिया है। स्वप्न में ॐ द्रव्येन्द्रियाँ निष्क्रिय होती हैं जो भी अनुभूति होती है वह सब मन के द्वारा। जागृत होने पर स्वप्न + में अनुभूत सभी क्रियाओं को वह अवग्रह, ईहा अवाय और धारणा तक ले जाता है। यह * आवश्यक नहीं कि स्वप्न में देखी हुई सभी बातों को वह धारणा तक ले ही जाए। कुछ बातें # अवग्रह तक, कुछ ईहा और कुछ अवाय तक ही रह जाती हैं। 卐 वृत्तिकार आचार्य श्री मलयगिरि ने मल्लक के दृष्टान्तों से व्यंजनावग्रह का स्पष्टीकरण करते ॥
हुए प्रसंगवश मतिज्ञान के भेदों का विस्तृत वर्णन भी दिया है। मतिज्ञान के अवग्रह आदि २८
भेद होते हैं। व्यंजनावग्रह-४, अर्थावग्रह-६, ईहा-६, अवाय-६, धारणा-६। इनमें से प्रत्येक के + क्षमतारूपी १२-१२ भेद होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर ३३६ भेद होते हैं।
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श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
( ३२९ )
Shrutnishrit Mati-Jnana 05555555555555550
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