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(१) अवग्रहणता - जिसके द्वारा शब्दादि पुद्गल ग्रहण होते हैं वह व्यंजन - अवग्रह अन्तमुहूर्त काल का होता है। उस काल के प्रथम समय में जो अव्यक्त आभास ग्रहण किया जाता है वह अवग्रहण कहलाता है।
(२) उपधारणता-व्यंजन-अवग्रह के शेष समयों में प्रत्येक समय में नए-नए ऐन्द्रियक पुद्गलों को ग्रहण करने की क्रिया तथा पूर्व में गृहीत का धारण किए रहना उपधारणता कहलाता है। अन्य शब्दों में इस ज्ञान- व्यापार के विभिन्न समयों को जोड़ता हुआ अव्यक्त से व्यक्त की ओर ले जाने वाले अवग्रह को उपधारणता कहते हैं ।
(३) श्रवणता - जो अवग्रह श्रोत्रेन्द्रिय से हो उसे श्रवणता कहते हैं।
(४) अवलम्बनता - अर्थ का ग्रहण करना अवलम्बनता है। अतः जो अवग्रह सामान्य ज्ञान से विशेष की ओर ले जाकर ईहा, अवाय और धारणा तक पहुँचाने वाला हो उसे अवलम्बनता कहते हैं।
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(५) मेधा - सामान्य और विशेष दोनों को ग्रहण करने वाले अवग्रह को मेधा कहते हैं ।
प्रथम दो भेद व्यंजन - अवग्रह से संबंधित हैं। तीसरा श्रोत्रेन्द्रिय अथवा शब्द से संबंधित है और चौथा तथा पाँचवाँ नियमतः ईहा, अवाय तथा धारणा तक पहुँचाने वाले हैं। कुछ ज्ञानधारा केवल अवग्रह तक ही रह जाती है और कुछ उससे आगे बढ़ने वाली होती है।
Elaboration-The receiving of the particles of sound, form etc. in the first samaya is avagrah. It is said to have-five names having one meaning, different pronunciations, and many consonants. These are also called paryayantar names (names of slight variations in attributes but still falling in the same broad category).
(1) Avagrahanata-The vyanjanavagrah that receives the particles of sound etc. lasts for antarmuhurt (less than forty eight minutes). The inexpressible indications received during the first samaya of this period is called avagrahanata.
(2)
Updharanata-During
the remaining period
vyanjanavagrah, every passing samaya new particles are received and the already received are contained. This process is called upadharanata. In other words during this process of acquisition of; knowledge, the avagrah that joins different samayas into a continuity and transforms the inexpressible into expressible is called upadharanata.
५ श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
(3) Shravanata-The avagrah that is accomplished through the sense organ of hearing is called shravanata.
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