________________
))
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
कककककककककककककककककककककक
)
05555555555555
5 44 卐 दो जन्म पहले वह एक तेजस्वी श्रमण था। एक-एक मास का उपवास करके रूखे-सूखे । 9 भोजन से पारणा करता था। एक बार मासखमण का पारणा करने के लिए भिक्षाटन को जा रहा - था। उसका शिष्य भी पीछे-पीछे चल रहा था। उसके पाँव से दबकर एक छोटा मेंढक भर गया। ॐ गुरु को इसका भान नहीं हुआ किन्तु शिष्य ने देख लिया। यह सोचकर कि गुरु को इसका
आभास नहीं है शिष्य ने विनयपूर्वक कहा-“गुरुदेव ! आपके पाँव के नीचे अनजाने ही एक मेंढक आ गया है और उसकी विराधना हो गई। कृपया प्रायश्चित्त कर लीजिए।'' गुरु को शिष्य की बात अप्रिय लगी। उसने शिष्य को झिड़क दिया।
शिष्य यह सोचकर चुप हो गया कि मार्ग में चलते-चलते मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। म दोनों अपने स्थान पर लौट आए। संध्या को जब प्रतिक्रमण का समय हुआ तो उचित अवसर
जान शिष्य ने पुनः वही बात दोहराई। गुरु क्रोध से पागल हो गया और शिष्य को मारने दौड़ा। उपाश्रय में अंधेरा था। गुरुजी एक खंभे में टकराए और गिर पड़े। उनका सिर फट गया और तत्काल मृत्यु हो गई। क्रोध के उग्र परिणामों में ही मरकर वे ज्योतिष्क देव बने।
ज्योतिष्क देव का आयुष्य पूर्ण कर वह कनकखल आश्रम के कुलपति के पुत्ररूप में जन्मा। उसका नाम कौशिक रखा गया। उग्र स्वभावी होने के कारण सभी उसे चण्डकौशिक कहने लगे।
एक बार आश्रम के उद्यान में श्वेताम्बी नगरी के कुछ किशोर घूमने आए। रंग-विरंगे फूलों को है देख वे तोड़ने लगे। चण्डकौशिक ने उन्हें मना किया। बालक राज-परिवार के थे, बेरोकटोक
मनमानी करते रहे। साथ ही वे चण्डकौशिक को धमकी भी देने लगे। तब चण्डकौशिक के आग-बबूला हो गया और हाथ में कुल्हाड़ी लिए उन्हें मारने के लिये दौड़ा। चपल बालक और तरुण तो भाग गए, बूढ़ा चण्डकौशिक दौड़ता हुआ एक गहरे गड्ढे में गिर पड़ा। कुल्हाड़ी से
स्वयं के ही सिर में चोट लगी और खून बहने लगा। क्रोध के उग्र परिणामों में मरकर इस जन्म __ में दृष्टिविष नाग बना।
पिछले दो जन्मों के चित्र नागराज की स्मृति में उभरने लगे और उसे उग्र क्रोध के कटु फलों का आभास हुआ। उसका हृदय पश्चात्ताप से पिघलने लगा। उसकी अंतश्चेतना जाग गई। मन शान्त हो गया। उसने शांत मूर्ति भगवान महावीर के चरणों का स्पर्श किया और मन ही मनक संकल्प किया-“प्रभु ! अब मैं जीवनभर किसी की ओर दृष्टि उठाकर नहीं देखूगा, न कुछ खाऊँगा, न पीऊँगा।'' और शांत हुआ वह नाग अपने बिल में मुँह डाल निश्चल हो पड़ा रहा।
दूसरे दिन ग्वालों ने दूर से देखा, महाश्रमण तो नाग की बाँबी के निकट ध्यानस्थ खड़े हैं। आश्चर्यचकित हो वे कुछ निकट आए। झांककर देखा तो नाग बॉबी में मुंह दिये शांत पड़ाफ़ दिखाई दिया। भीड़ एकत्र हो गई। कुछ लोगों ने लकड़ी, पत्थर फेंके तो बूढ़ों ने कहा"नाग देवता है, मारना नहीं। पूजा करो।" तो लोगों ने दूध, खीर आदि लाकर चढ़ाना, आरंभ कर दिया। इस बीच नाग शांत हो सभी कुछ सहता रहा। निश्चल पड़ा रहा। खीर आदिक की गंध से चींटियों के झुंड आ गए और नाग के शरीर को भी काटने लगे। पूर्व जीवन के श्री नन्दीसूत्र
( २९२ )
Shri Nandisutra
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
)
म卐म
ऊध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org