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卐 (१६) चरणाहत-किसी नगर में एक युवा - राजा राज्य करता था। उसे अपरिपक्वज
जानकर कुछ युवक उससे लाभ उठाने के उद्देश्य से उसके पास आए और उसे परामर्श दिया+ "महाराज ! आप तरुण हैं अतः आपको अपने राज्य-कार्यों के संचालन के लिए भी तरुणों को 卐 ही रखना चाहिए। ऐसे लोग अपनी शक्ति व योग्यता से कुशलतापूर्वक व्यवस्था सँभाल सकेंगे। वृद्धजन शारीरिक दृष्टि अशक्त होने के कारण कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाते।
यद्यपि राजा अल्पायु तो था पर साथ ही अत्यन्त बुद्धिमान भी। उसने युवकों की बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने के विचार से एक प्रश्न किया-“यदि मेरे मस्तक पर कोई अपने पैरों से प्रहार फ़ करे तो उसे क्या दंड दिया जाना चाहिए ?"
युवकों ने तत्काल कहा-"ऐसे व्यक्ति के टुकड़े-टुकड़े कर देने चाहिए।"
तब राजा ने यही प्रश्न दरबार के अनुभवी वृद्धों से पूछा। उन्होंने सोच-समझकर उत्तर दियाॐ “महाराज ! आपको उसे प्यार करना चाहिए और वस्त्राभूषणों से पुरस्कृत करना चाहिए।"
यह उत्तर सुन वे तरुण क्रोध से लाल हो गए। राजा ने उन्हें शान्त करते हुए वृद्धजनों से 5 अपनी बात का अर्थ समझाने के लिए कहा। एक वृद्ध सभासद ने खडे होकर कहा-“महाराज !
निश्चय ही आपके मस्तक पर पैरों से प्रहार करने वाला आपके शिशु पुत्र को छोड़ और कौन हो 卐 सकता है ? शिशु राजपुत्र की शैशवता पूर्ण क्रीड़ा के लिए उसे दण्ड नहीं स्नेह दिया जाता है।" र वृद्ध की बात सुन युवक अपने अज्ञान पर बहुत लज्जित हुए। राजा ने प्रसन्न हो वृद्ध ॐ दरबारियों को पुरस्कृत किया और युवाओं से कहा-“राज्य-कार्य में केवल शक्ति ही नहीं, बुद्धि
और अनुभव की भी आवश्यकता होती है।" वृद्धों ने अपनी पारिणामिकी बुद्धि से राजा को संतुष्ट कर दिया।
(१७) आँवला-एक कुम्हार ने पीली मिट्टी का एक आँवला बनाया। एक व्यक्ति को मूर्ख समझ उसे वह आँवला बेचने के विचार से उसके हाथ में दिया। ऑवला हाथ में ले उस व्यक्ति ने ॐ विचार किया-"यह देखने में तो ऑवले जैसा है किन्तु कठोर है। और फिर यह ऑवलों की ऋतु
भी नहीं है।" अपनी पारिणामिकी बुद्धि के सहारे उसने आँवले की कृत्रिमता को पहचान लिया
और फेंककर उसकी ठगाई में नहीं फँसा। * (१८) मणि-किसी जंगल में एक मणिधर सॉप रहता था। रात्रि समय में वह पेड पर चढ़कर म पक्षियों के बच्चों को खा जाता था। एक बार जब वह वृक्ष पर चढ़ा तो अपने शरीर को सँभाल
न सका और वृक्ष से नीचे गिर पड़ा। गिरते समय उसकी मणि पेड़ की डालों में अटक गई। वृक्ष
के ठीक नीचे एक कुँआ था। पेड़ में अटकी मणि के प्रकाश में उसका पानी लाल दिखाई देने ॐ लगा। प्रातःकाल कोई एक बालक खेलता हुआ उधर आ निकला। कौतूहलवश उसने कुएँ में 5 के झाँका तो उसे लाल पानी दिखाई दिया। घर लौटकर उसने यह बात अपने पिता को बताई और ॐ लाल पानी दिखाने उसे साथ ले आया। पिता अनुभवी और पारिणामिकी बुद्धि-सम्पन्न था। उसने
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+ श्री नन्दीसूत्र
( २९० )
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