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११. चित्र परिचय
Illustration No. 11
मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप मनःपर्यवज्ञान का पात्र-अप्रमत्त संयत-जो पूर्वो के ज्ञान का धारक आहारकलब्धि, तेजोलेश्या, जंघाचारण, विद्याचारण आदि विशिष्ट ऋद्धियुक्त अप्रमत्त संयत होते हैं, उन्हें विशिष्ट विशुद्ध उच्च भावधारा में स्थित होने पर मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है। वे लोक में स्थित ऊर्ध्वलोकवासी देवताओं, मध्यलोक में स्थित मनुष्यों, अनेक द्वीप-समुद्रों में स्थित संज्ञी पशु-पक्षियों तथा सातों नरक में स्थित नैरयिकों के मन की पर्यायों को जानते हैं।
चित्र में बताये अनुसार शुद्ध भावधारा में स्थित अप्रमत्त संयत मुनि अपने स्थान पर स्थित रहकर ही लोक के संज्ञी जीवों के मन में उठने वाली भाव तरंगों (मनोवर्गणा के पुद्गलों) को ग्रहण करते हैं। (वर्णन, सूत्र २८ से ३७ तक)
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THE FORM OF MANAH-PARYAV-JNANA Apramatt Samyat-The vessel of manah-paryavjnana-Those who have acquired the knowledge of purvas; who possess special powers like Aharak labdhi, Tejolehsya, Janghacharan, Vidyacharan etc.; and are apramatt samyat acquire manah-paryav-jnana when they reach a highly pure and lofty spiritual state. The know the mental activities of the gods living in the upper world, the human beings living in the middle world, the sentient beings living in numerous continents and seas, and the hell beings living in all the seven hells.
As illustrated the apramatt samyat ascetics in the lofty spiritual state receive the thought waves arising in all the sentient beings in the universe. (Elaboration, 28 to 37)
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