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4996555555555555FESSIO प्रतिक्रमण के समय शिष्य ने पुनः उन्हें प्रायश्चित्त के लिए याद दिलाया। इस पर तपस्वी क्रुद्ध हो । E गया और शिष्य को मारने के लिए झपटा। अंधकार में शिष्य तो दिखाई नहीं दिया, उसका सिर
एक खम्भे से टकरा गया। चोट इतनी गहरी लगी कि उसी क्षण उसकी मृत्यु हो गई। अपनी
कठोर तपस्या के फलस्वरूप उसका पुनर्जन्म ज्योतिष्क देव के रूप में हुआ। देवलोक की आयुष्य to पूर्ण कर वह तीव्र कषायजनित कर्मों के फलस्वरूप दृष्टि-विष सर्प के रूप में जन्मा। सर्प के रूप 5
में उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और पूर्वजन्मों के विषय में सभी कुछ स्मरण हो आया। # अपने दुष्कर्म के विषय में जान वह घोर पश्चात्ताप से भर उठा और उनका हृदय परिवर्तन हो
गया। इस आशंका से कि उसके दृष्टि-विष से किसी की मृत्यु न हो जाये, उसने अपने बिल से, निकलना ही बन्द कर दिया।
समीप के ही राज्य में एक राजकुमार की सर्प-दंश से मृत्यु हो गई। दुःख और क्रोध से पीड़ित राजा ने आस-पास के सभी साँपों को ढूंढ-ढूँढ़कर मारने की आज्ञा दे दी। राज्यभर के 5 सपेरे इस काम में जुट गये। एक सपेरा इस दृष्टि-विष सर्प के बिल के निकट भी पहुँचा और
बिल में कोई औषधि डाल दी। औषधि से पीड़ित हो साँप को बाहर निकलना पडा किन्तु यह विचारकर कि उसकी दृष्टि अन्त समय में भी किसी पर पड़ेगी तो वह मर जायेगा, वह सॉप पूँछ के बल निकलने लगा। सपेरा राह देख रहा था जैसे-जैसे साँप का शरीर बाहर निकलता गया सपेरा उसके टुकड़े करता गया। इस तीव्र वेदना को भी वह सॉप प्राणान्त होने तक समतापूर्वक सहता रहा। पुण्य कर्मों के बंधन होने से वह उसी राजा के घर में पुत्ररूप में जन्मा। उसका नाम नागदत्त रखा गया।
पूर्वजन्म के उत्तम संस्कार लेकर जन्मा नागदत्त बाल्यावस्था में ही विरक्त हो गृहस्थ जीवन 卐 त्यागकर मुनि बन गया। अपने विनय, सरलता, सेवा एवं क्षमा जैसे विशिष्ट गुणों के कारण वह
देवों के लिए भी वन्दनीय बन गया। उसकी यह महिमा देख अन्य मुनि उससे ईर्ष्या रखने लगे।
मुनि नागदत्त को अपने पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण भूख अधिक लगती थी और वह अधिक + समय तक भूखा न रह सकने के कारण उपवास भी नहीं कर सकता था।
एक दिन जब अन्य सभी मुनि उपवास कर रहे थे उसने भी उपवास करने की चेष्टा की। पर जब वह भूखा नहीं रह सका तो अपने लिए आहार लेकर आया। मुनि आचार के अनुरूप
अपना लाया आहार उसने अन्य मुनियों को दिखाया और आहार करने की अनुमति चाही। एक ॐ मुनि ने उसे भुखमरा कहकर उसके आहार में थूक दिया। नागदत्त में समता और क्षमाभाव
कूट-कूटकर भरे थे। इस घटना पर भी उसे रोष अथवा अन्य किसी भी प्रकार की तीव्र प्रतिक्रिया नहीं हुई। वह स्वयं अपनी ही दुर्बलता की आलोचना करता ध्यान-मग्न हो गया। इस उपशान्त वृत्ति के फलस्वरूप उसके परिणामों की विशुद्धता बढ़ती गई और उसे वहीं केवलज्ञान प्राप्त हो गया। देवता कैवल्य महोत्सव मनाने आये। यह चमत्कार देख वहाँ उपस्थित सभी मुनियों
को अपने किए दुर्व्यवहार पर घोर पश्चात्ताप हुआ और वे भी आत्म-आलोचना करते-करते, [ ध्यान-मग्न हो गये। उन्हें भी कैवल्य प्राप्त हो गया।' मतिज्ञान ( पारिणामिकी बुद्धि)
( २६३ ) Mati.jnana (Parinamiki Buddhi) OFyyyyyEEEEEE
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