Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 341
________________ 登场的醫助野野第给第功劳与断等野野第5岁岁当写明与中 * काम के वशीभूत व्यक्ति हित-अनहित सब भूल जाता है और कुछ भी करने को तत्पर हो ॐ उठता है। मुनि भी अपनी साधना और संयम भूल नेपाल यात्रा पर चल दिया। अनेक कष्ट । भोगता हुआ वह नेपाल-नरेश के पास पहुँचा और रत्नकंबल लेकर प्रसन्नचित्त हो लौटने लगा। मार्ग में डकैतों ने मारपीट कर वह कंबल छीन लिया। मुनि की काम-पिपासा तब भी शान्त नहीं 卐 हुई। वह मार्ग के कष्टों की परवाह न करते हुए वापस नेपाल गया और फिर एक कंबल माँग लाया। इस बार वह कंबल उसने एक पोले डंडे के भीतर छुपा लिया। राह के कष्ट झेलता, चोर-डकैतों से बचता अन्ततः क्षीण व दुर्बल शरीर लिये वह कोशा के पास पहुंचा। अपनी मनोकामना पूरी होने की आशा लिए उसने कंबल कोशा के हाथ में थमा दिया। कोशा ॐ उसके जर्जर शरीर को देख मुस्कराई और उस बहुमूल्य कंबल को पैर पोंछकर गंदगी के ढेर पर 卐 फेंक दिया। ॐ मुनि ने हड़बड़ाकर कहा-“यह क्या किया कोशा? कितने कष्ट सहकर मैं यह कंबल तुम्हारे + लिए लेकर आया और तुमने इसे गंदगी के ढेर पर फेंक दिया।" 卐 कोशा ने गंभीर स्वर में कहा-“मुनिराज ! मैंने यह सब तुम्हें सन्मार्ग पर लाने के लिए किया है। तुम अपने मार्ग से भटक गए थे। रत्नकंबल अवश्य ही बहुमूल्य है, किन्तु साधना से अर्जित किया संयम तो अनमोल है। सारे संसार का सुख-वैभव भी उसके सामने नगण्य है। तुमने है अपने स्व-अर्जित ऐसे अनमोल धन को काम-भोगरूपी कीचड़ में डालने की मन में ठान ली थी। जागो और समझने की चेष्टा करो कि जिसे गर्हित और हेय जानकर तुम त्याग चुके थे उसे पुनः ॐ ग्रहण करने को लालायित क्यों हो रहे हो?" “स्थूलिभद्रः स्थूलिभद्रः स एकोऽखिल साधुषु। युक्तं दुष्कर-दुष्करकारको गुरुणा जगे॥" कोशा की बात सुनकर मुनि की आँखें खुल गईं। वह हठात् बोल उठा-“वास्तव में दुष्कर फ़ से दुष्कर साधना करने वाले स्थूलिभद्र मुनियों में अद्वितीय है। गुरुदेव ने जो कहा था वह सत्य है।" अपने संयम स्खलन की पीड़ा लिए, विचारों में डूबा वह मुनि अपने गुरुदेव के पास लौटा। Fउनसे अपने पतन की सारी कथा कही और पश्चात्ताप करते हुए प्रायश्चित्त किया। अपनी आलोचना करते हुए उसने बार-बार स्थूलिभद्र की प्रशंसा करते हुए कहा-"अपनी ओर + आकर्षित और अनुरक्त वेश्या, षट्रस भोजन, मनोहारी महल, स्वस्थ शरीर, विकसित यौवन और वर्षाकाल इतनी अनुकूलताओं के होते हुए भी जिसने कामदेव को जीत लिया और वेश्या 卐 को प्रतिबोध दे धर्ममार्ग पर ले आया ऐसे स्थूलिभद्र मुनि को मैं प्रणाम करता हूँ।" इस प्रकार अपनी पारिणामिनी बुद्धि के बल पर स्थूलिभद्र ने मंत्रिपद तप प्राप्त भोगों को, म धन-वैभव को त्यागकर आत्म-कल्याण किया-अतः वे प्रशंसा के पात्र हैं। 听听听听听听听听听听听听听听听听 $ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 听听听听听听听的 生听听听$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$556 5 श्री नन्दीसूत्र ( २७४ ) Shri Nandisutra $%%步步步步岁岁万岁万岁岁步步步牙%步步岁男岁岁男身另% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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