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15. Alpabahutva dvar (the parameter of high and low)-There number of beings becoming Siddha two or three or four or more at a s
time is very low. The number of those becoming Siddha only one at a 41 time is many times more.
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(१) द्रव्य द्वार 2. DRAVYA DVAR OR DRAVYAPRAMAN
(THE PARAMETER OF MATTER) (१) क्षेत्र द्वार-ऊर्ध्वदिशा में संहरण की अपेक्षा से एक समय में चार सिद्ध होते हैं। निषधपर्वत, नन्दनवन, और मेरु आदि के शिखर से चार, नदी नालों से तीन, समुद्र से दो, ॐ पण्डकवन से दो, तीस अकर्मभूमि क्षेत्रों में प्रत्येक में दस-दस। प्रत्येक विजय में कम से कम २०
और अधिक से अधिक १०८। पन्द्रह कर्मभूमि क्षेत्रों से एक समय में अधिकतम १०८ आत्माएँ सिद्ध हो सकती हैं।
(२) काल द्वार-अवसर्पिणी काल के तीसरे और चौथे आरे में एक समय में अधिकतम 5 १०८ तथा पाँचवें आरे में अधिकतम २० सिद्ध हो सकते हैं। उत्सर्पिणी काल के तीसरे और म चौथे आरे के लिए भी यही नियम है। शेष सात आरों में संहरण की अपेक्षा एक समय में है
दस-दस सिद्ध हो सकते हैं। 卐 (३) गति द्वार-एक समय में रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा, इन नरक भूमियों से ॥
निकले हुए दस; पंकप्रभा से निकले हुए चार; सामान्य रूप से तिर्यंच से निकले हुए दस; विशेष # रूप से पृथ्वीकाय और अप्काय से निकले हुए चार-चार और वनस्पतिकाय से निकले हुए छह ॐ सिद्ध हो सकते हैं।
विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय से निकले हुए जीव सिद्ध नहीं हो सकते। है मनुष्यगति से आये बीस, मनुष्य पुरुषों से आए दस तथा मनुष्य स्त्री से आए दस जीव सिद्ध हो
सकते हैं। देवगति से आये हुए एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं। इसमें भी भवनपति एवं व्यन्तर
देवों से दस-दस तथा उनकी देवियों से पाँच-पॉच, ज्योतिष्क देवो से दस, देवियों से बीस और ॐ वैमानिक देवों से आए १०८ तथा उनकी देवियों से आये बीस सिद्ध हो सकते हैं।
(४) वेद द्वार-एक समय में स्त्रीवेदी २०, पुरुषवेदी १०८ और नपुंसकवेदी १0 सिद्ध हो ॐ सकते हैं। मनुष्यगति से ही आए जीवों के वेद के अनुसार ९ विभाजन हैं इनमें से पुरुष मरकर
पुरुष भव प्राप्त करे ऐसे जीव एक समय में १0८ सिद्ध हो सकते हैं। शेष आठ प्रकार के दस-दस ही हो सकते हैं।
(५) तीर्थंकर द्वार-एक समय में पुरुष तीर्थंकर चार और स्त्री तीर्थंकर दो सिद्ध हो सकते हैं।
(६) लिंग द्वार-एक समय में गृहलिंगी चार, अन्यलिंगी दस और स्वलिंगी एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं।
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श्री नन्दीसूत्र
( १३८ )
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