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नट किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। तत्काल एक व्यक्ति को रोहक के पास दौड़ाया। रोहक ने उसे म समझाकर वापस भेज दिया। लौटकर उसने कहा-“महाराज, हम गणित के विद्वान् नहीं हैं। तिलों म की संख्या इतनी विशाल है कि उसे कहना हमारे लिए संभव नहीं है। फिर भी हम उस संख्या -
को उपमा देकर आपको बताते हैं-उज्जयिनी नगरी की सीध में ऊपर आकाश का जो भाग है । ॐ उसमें जितने तारे दिखाई देते हैं ठीक उतनी ही संख्या इन तिलों की है।" रोहक की बुद्धिमत्ता से 卐 फ एक बार पुनः राजा प्रभावित हुआ। म (६) बालुक-राजा को रोहक की इन परीक्षाओं में आनन्द आने लगा। इस बार उसने नटों
से कहा-“तुम्हारे गाँव के बाहर जो टीले के टीले बालू है वह बहुत सुन्दर है। एक काम करो।
उस बालू की एक लम्बी रस्सी बनाकर हमें ला दो।" । क इस बार तो नटों के प्राण ही निकल गए। ऐसा असंभव काम तो शायद रोहक के बस का
भी न हो। फिर भी वे रोहक के पास समस्या के निदान के लिए गए। रोहक सीधासादा बुद्धिमान् ॐ ही नहीं चतुर भी था। उसने तत्काल एक उपाय बता दिया।
नटों का मुखिया राजा के पास आकर भरे दरवार में बोला-''महाराज ! हम तो नट हैं। 卐 बॉसों और रस्सियों पर नाचते हैं। रस्सी बनाना तो हमें नहीं आता पर हम यह अवश्य जानते हैं :
कि रस्सियाँ अनेक प्रकार की बनावट की होती हैं। हम पूरी लगन से आपकी इच्छापूर्ण करने को
तत्पर हैं। आप बस इतना-सा कष्ट कीजिए कि अपने भण्डार से रेत की रस्सी का एक छोटा-सा मटुकडा नमूने का हमें दिलवा दीजिए जिससे हम वैसी की वैसी रस्सी वनाकर ले आवें।"
राजा निरुत्तर हो गया और रोहक की चतुराई पर मुग्ध भी।
(७) हस्ती-तत्पश्चात् एक दिन राजा ने एक बूढ़े मरणासन्न हाथी को नटों के गाँव में भेज दिया। आज्ञा दी कि “उस हाथी की भली प्रकार सेवा की जाए और प्रतिदिन क्षेम-कुशल के ॐ समाचार भेजे जाएँ। जिस दिन किसी ने यह समाचार दिया कि हाथी मर गया है, सबको दण्ड
दिया जाएगा। ॐ भयभीत गाँव वाले फिर रोहक के पास पहुंचे। रोहक ने सारी बात समझकर आश्वासन
दिया-“आप लोग हाथी को खुराक देते रहें। बाकी जो होगा वह मैं ठीक कर लूंगा।'' संध्या को
हाथी को यथोचित श्रेष्ठ आहार दिया गया किन्तु फिर भी वह रात नहीं निकाल सका। लोग डर 卐 गए। किन्तु रोहक ने आकर उन्हें ढाढस बँधाई और आवश्यक निर्देश दे दिए। - गॉव वाले राजा के पास जाकर बोले-“महाराज । आज हाथी न कुछ खाता है, न पीता है, ॐ न उठता है और न ही कोई चेष्टा करता है। ऐसा लगता है कि वह सॉस भी नहीं ले रहा।"
राजा ने क्रोध दर्शाकर ऊँचे स्वर में कहा-"तो क्या हाथी मर गया?' नट वोले-प्रभु ! हम ऐसा कैसे कह सकते हैं, यह वात तो आप ही कह सकते हैं।''
राजा एक बार फिर रोहक की कुशाग्र बुद्धि से चमत्कृत हो चुप रह गया। गाँव वाले प्रसन्न हो लौट आए। मतिज्ञान (औत्पत्तिकी बुद्धि)
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Matijnana (Autpattika Buddhi) 0555555555555555555555555550
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