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555555 57 47 4 पास आया है उस सारे विष से जितने लोग मर सकेंगे उससे भी कहीं अधिक नर-संहार इस छोटी सी शीशी से हो जायेगा ।" राजा ने आश्चर्यपूर्वक पूछा - "यह कैसे संभव है ? क्या आप इसका प्रमाण दे सकते हैं । "
वैद्य ने उसी समय एक वृद्ध हाथी लाने को कहा। हाथी आया, तो उसकी पूँछ से एक बा उखाडा और उस स्थान पर सूई की नोंक से विष का संचार किया। विष जैसे-जैसे शरीर में फैलने लगा वैसे-वैसे हाथी के अंग शिथिल होने लगे। वैद्य ने कहा- "महाराज ! यह हाथी विषमय होता जा रहा है। इसका माँस जो भी खायेगा वह भी विषमय हो जायेगा । इसलिए इस विष को सहस्रवेधी कहते हैं । "
राजा को वैद्य की बात पर विश्वास हो गया। तभी हाथी को मरता देख राजा ने कहा" वैद्यराज ! यह हाथी व्यर्थ ही मर रहा है। क्या इसका उपचार नहीं हो सकता ?" वैद्य ने कहा'अवश्य, जो विष की काट न जाने वह कैसा चिकित्सक।" और वैद्य ने हाथी के उसी रन्ध्र में किसी औषधि का संचार किया। देखते ही देखते हाथी स्वस्थ हो गया।
वैद्यराज का यह व्यापक ज्ञान उन्हें वैनयिकी बुद्धि की सहायता से ही प्राप्त हुआ था। (११-१२) रथिक एवं गणिका - सारथी तथा गणिका के उदाहरण स्थूलभद्र की कथा में वर्णित हैं । (देखें पृ.)
(१३) शाटिका आदि - किसी नगर में एक अत्यन्त लोभी राजा था। उसके राजकुमार एक विद्वान गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करते थे । राजकुमार उदारमना व विनयशील थे । अतः आचार्य ने भी अपने इन शिष्यों को बहुत लगन से शिक्षा दी । विद्याध्ययन पूर्ण होने पर राजकुमारों ने अपने गुरु को प्रचुर धन दक्षिणा स्वरूप भेंट किया। राजा को किसी प्रकार यह समाचार मिला और उसने निश्चय किया कि विद्वान को मारकर उसका धन ले लेना चाहिए । राजकुमारों को इस बात की भनक लग गई। अपने गुरु आचार्य के प्रति गहरी श्रद्धा और स्नेह के कारण उन्होंने किसी प्रकार उनकी जान बचाने का निश्चय किया ।
तीनों राजकुमार अपने आचार्य के पास गये। उस सयम वे भोजन से पूर्व स्नान की तैयारी कर रहे थे। शिष्यों का स्वागत कर उन्होंने सूखी धोती (शाटिका) मँगाई। एक राजकुमार ने कहा-“शाटिका गीली है । " तभी दूसरा बोला - " तिनका लम्बा है।” फिर तीसरे ने भी कहा“पहले क्रौंच पक्षी दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करता था अब वह बायीं ओर घूम रहा है। " आचार्य ने जब कुमारों के मुँह से ये अटपटी बातें सुनी तो उनका माथा ठनक गया। उन्होंने विचार किया और समझ गये कि उनके धन के कारण कोई उनका शत्रु बन गया है और ये शिष्य उन्हें चेतावनी दे रहे हैं। यह समझते ही उन्होंने अपने शिष्यों से विदा ली और चुपचाप घोषित समय से पूर्व ही अपने गाँव की ओर चले गये । राजकुमारों की वैनयिकी बुद्धि ने उनके 5 गुरु की जान बचायी।
5 मतिज्ञान ( वैनयिकी बुद्धि )
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Mati-jnana (Vainayiki Buddhi)
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