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पुत्र-पुत्री जब तक युवा हुए दुर्भाग्यवश रानी पुष्पवती का देहान्त हो गया । उसने पुष्पवती नामक देवी के रूप में जन्म लिया ।
देवी रूप में उसने अवधिज्ञान प्रयोग से अपने पति, पुत्र-पुत्री और पूर्व-परिवार को देखा तो उसे विचार आया कि यदि पुत्री पुष्पचूला आत्म-कल्याण का पथ अपनाले तो बहुत अच्छा हो । यह सोचकर उसने अपनी दैविक ऋद्धि द्वारा पुष्पचूला को स्वप्न में नरक की यातना के दारुण दृश्य स्पष्ट रूप से दिखाये । स्वप्न देख पुष्पचूला को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने सांसारिक सुखों का त्यागकर संयम ग्रहण कर लिया। दीक्षा लेकर मुनिधर्म का शुद्ध पालन करते हुए उसने घोर तप व ध्यान आदि द्वारा घातिकर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में जन्म-मरण से छुटकारा प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। देवी की पारिणामिकी बुद्धि के प्रभाव से एक आत्मा ने सिद्ध गति प्राप्त की ।
(५) उदितोदय - पुरिमतालपुर नामक एक नगर के राजा का नाम उदितोदय था । उसकी रानी थी श्रीकान्ता । दोनों बड़े धार्मिक विचारों के थे और श्रावक धर्म के आचार नियमों का पालन करते हुए सुख से रहते थे । एक दिन एक परिव्राजिका उनके अन्तःपुर में आई और उसने शौच मूलक धर्म का उपदेश दिया। महारानी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया तो वह क्रुद्ध हो वहाँ से चली गई। अपमानित सी हुई परिव्राजिका ने बदला लेने के उद्देश्य से वाराणसी के राजा धर्म रुचि के पास जा कर रानी श्रीकान्ता के रूप यौवन की प्रशंसा की और धर्मरुचि को उसे प्राप्त
करने के लिए उकसाया ।
धर्मरुचि ने पुरिमताल पर चढ़ाई कर नगर को चारों ओर से घेर लिया। रात को राजा उदितोदय ने विचार किया कि अगर युद्ध करूँगा तो भीषण नर-संहार होगा और असंख्य निरपराध प्राणी व्यर्थ मारे जायेंगे। इस घोर हिंसा से बचने के लिए उपाय ढूँढ़ने के लिए उसने वैश्रमण देव की आराधना करने का निश्चय किया और अष्टमभक्त (तीन दिन का उपवास ) तप 5 आरम्भ कर दिया। व्रत सम्पन्न होने पर वैश्रमण देव प्रकट हुआ और उदितोदय ने उसे अपनी समस्या बताकर नरसंहार टालने का उपाय बताने को कहा। देवता राजा की अनुकम्पा भावना से प्रभावित हुआ और उसने तत्काल अपनी शक्ति के प्रभाव से पुरिमताल नगर को किसी अन्य स्थान पर स्थापित कर दिया।
दूसरे दिन प्रातःकाल राजा धर्मरुचि उठा तो यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया कि जहाँ उसने घेरा डाल रखा था वहाँ से पुरिमताल नगर ही अदृश्य हो चुका था । वह निराश हो अपनी सेना लेकर लौट गया और एक भीषण नर-संहार होते-होते बच गया ।
(६) साधु और नन्दिषेण - राजगृह के सम्राट श्रेणिक के एक पुत्र का नाम था नन्दिषेण । उसके युवा होने पर महाराज श्रेणिक ने अनेक सुन्दर व गुणवती राज कन्याओं के साथ उसका
विवाह कर दिया।
श्री नन्दीसूत्र
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Shri Nandisutra
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