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जब तक वे नगर तक पहुंचे रात हो गई और नगर के द्वार बन्द हो गये। वे तीनों सुबह । म होने के इन्तजार में पास के एक घने पेड़ के नीचे सो गये। पुण्यहीन को कहाँ नींद आती थी। वह + सोच में डूब गया-"भाग्य मेरा साथ नहीं देता। भला करने जाता हूँ और बुरा हो जाता है। ऐसे के जीवन से तो मृत्यु भली। सभी विपत्तियों से छुटकारा मिल जायेगा।"
यह सोचकर उसने अपने दुपट्टे को पेड़ की डाल से बाँधा और गले में फंदा लगाकर लटक ॐ गया। भाग्यहीन को मृत्यु भी नहीं आई। दुपट्टा गला हुआ था अतः उसका बोझ नहीं सह सका ॥ + और टूट गया। पेड़ के नीचे नटों का एक दल भी सोया हुआ था। पुण्यहीन उसी पर गिरा और
उसके मुखिया की तत्काल मृत्यु हो गई। नटों में खलबली मच गई और अन्ततः वे भी राजा के के पास जा पुण्यहीन को दण्ड दिलवाने के लिए साथ हो लिए।
राजदरबार में जब यह भीड़ पहुँची तो सभी चकित हो गये। राजा ने इतने लोगों के एक साथ आने का कारण पूछा तो सब अभियोगकर्ताओं ने अपने अपने अभियोग सुनाए। तब राजा ने पुण्यहीन की ओर देखा। उसने सभी अभियोगों को स्वीकार करते हुए कहा-"महाराज ! मैंने जानबूझ कर कोई अपराध नहीं किया। मैं इतना भाग्यहीन हूँ कि मेरे द्वारा किया प्रत्येक भला कार्य बुरा बन जाता है। ये सभी सच कह रहे हैं। आप जो भी दण्ड दें मुझे स्वीकार है।"
राजा बहुत विचारशील और न्यायप्रिय था। वह समझ गया कि उस भोले व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। भाग्य के दोष के लिए उसे दण्ड देना उचित नहीं। उसे दया आई और उसने अपने गहन अनुभव और वैनयिकी बुद्धि का उपयोग कर बड़े चतुराई से फैसले सुनाए।
सबसे पहले उसने बैल वाले को बुलाकर कहा-“तुम्हें अपने बैल लेने हैं तो पहले अपनी आँखें निकाल कर इसे दे दो-क्योंकि तुमने अपनी आँखों से इसे बाड़े में बैल ले जाते हुए देखा
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था।"
इसके बाद घोड़े वाले को बुलाकर कहा-"अगर तुम्हे घोड़ा चाहिए तो पहले अपनी जीभ के काट कर इसे दे दो जिसने इसे घोड़े को डण्डा मारने को कहा था। इसे दण्ड देना तब तक न्यायोचित नहीं जब तक तुम्हारी जीभ को दण्ड न मिले।" ____ अन्त में उसने नटों को बुलाया और कहा-“इस दीन व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं जो दिलवाया जाये। तुम्हें बदला ही लेना है तो इसे उसी वृक्ष के नीचे सुला देते हैं। तुममें से जो मुखिया है वह गले में फंदा लगाकर उसी डाल से लटक जाये। वह इस व्यक्ति पर गिरेगा और यह मर जायेगा।" हिसाब बराबर हो जायेगा।
राजा के इस न्याय ने तीनों को निरुत्तर कर दिया और वे अपना सा मुँह लेकर चले गये। पुण्यहीन व्यक्ति राजा को धन्यवाद दे अपने स्थान को लौट गया।
Elaboration—The stories compiled as examples of vanayiki Buddhi are as follows:
मतिज्ञान (वैनयिकी बुद्धि) $$ %%%%%%
( २२९ )
Mati-jnana (Vainayiki Buddhi) %%%紧步步步男与男%%%%%%步 步步步等
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