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मंत्री उसकी हालत देखकर समझ गया कि दाल में कुछ काला है। उसने मजदूर को ढाढ़स बँधाई और अपने साथ राजा के पास ले गया। राजा ने जब सारी घटना सुनी तो पुरोहित को है म बुलवा भेजा। जब पुरोहित दरबार में आया तो राजा ने पूछा-"ब्राह्मण देवता, आप इस व्यक्ति के
की धरोहर लौटा क्यों नहीं देते?" पुरोहित ने राजा को भी वही उत्तर दिया-"महाराज ! मैं इस ॐ व्यक्ति को जानता भी नहीं और न ही इसकी कोई धरोहर मेरे पास है।'
पुरोहित के लौट जाने के बाद राजा ने मजदूर से सब-कुछ विस्तार से बताने को कहा। ॐ मजदूर ने शान्त चित्त अपनी थैली का आकार, रंग, पुरोहित के पास रखने का दिन और यहाँ के म तक कि पुरोहित ने उसे उठाकर कहाँ रखा यह भी बता दिया। ॐ कुछ दिन बाद अवसर देख राजा ने पुरोहित को शतरंज खेलने बुलाया। खेल में मगन है
पुरोहित को बातों में लगा राजा ने उससे अँगूठी बदल ली। कछ देर बाद लघुशंका के बहाने
राजा गया और अपने एक विश्वासी सेवक को चुपचाप पुरोहित की अंगूठी देकर उसके घर ॐ जाने को कहा। वहाँ जाकर पुरोहित पत्नी को अंगूठी दिखाकर एक हजार मोहरों की अमुक रंग 卐 की थैली जो पुरोहित जी ने अमुक दिन अमुक स्थान पर रखी थी ले आने को कहा। ॐ पुरोहित की अंगूठी देख उसकी पत्नी को विश्वास हो गया कि यह संदेश उसके पति का ही ज + है। उसने झट से थैली निकालकर दे दी। राजा ने उस थैली को अपनी अनेक थैलियों के बीच
रख दिया और उसी समय मजदूर को बुलाया। मजदूर ने अनेक थैलियों के बीच अपनी थैली को ऊ पहचानकर उठा लिया। राजा ने उसे सहर्ष जाने को कहा और पुरोहित को दण्ड दिया।
३. अंक-एक बार एक व्यक्ति ने धरोहर के रूप में एक साहूकार के पास एक हजार रुपये ॐ की एक नौली (थैली जो पूरे नाप की होती है और सिलाई कर दी जाती है) किसी साहूकार के म
पास रख दी और स्वयं यात्रा पर निकल गया। पीछे से साहूकार ने बड़ी सफाई से नौली के नीचे की
के भाग को काटकर उसमें से रुपये निकाल लिये और खोटे सिक्के (जो आकार में कुछ छोटे होते 卐 हैं) भरकर बराबर कर सिलाई कर दी। कुछ दिनों बाद नौली का मालिक लौटा तो साहूकार ने के है उसकी नौली उसे वापस दे दी। उस व्यक्ति ने जब अपने घर जाकर नौली को खोला तो अपने
सिक्कों के स्थान पर नकली सिक्के देखकर घबराया। नौली और खोटे सिक्के लेकर वह सीधा + न्यायाधीश के पास पहुंचा। न्यायाधीश ने सारी बात सुनकर उससे पूछा कि नौली में कितने रुपये 卐 रखे थे। उस व्यक्ति ने बताया-“एक हजार।" न्यायाधीश ने एक हजार रुपये मँगवाकर नौली में 5 + भरवाये और पाया कि जितने रुपये शेष बचे थे ठीक उतनी ही नौली काटी हुई थी। उसे उस
व्यक्ति की सच्चाई पर विश्वास हो गया। साहूकार को बुलवाकर उस आदमी के रुपये वापस फ़ दिलवाए और साहूकार को दण्ड दिया।
४. नाणक-एक बार एक आदमी एक सेठ के पास एक हजार स्वर्ण-मुद्राएँ एक थैली में बंद 卐 कर अपने नाम की सील लगाकर धरोहर के रूप में रखकर विदेश चला गया। उसे वापस आने के 9 में कई वर्ष लग गए। इसी बीच सेठ ने बड़ी सफाई से सील हटाकर स्वर्ण-मुद्राएँ निकाल ली और
वैसी की वैसी पीतल की मुद्राएँ बनवाकर थैली में रखकर ज्यों की त्यों सील लगा दी। मतिज्ञान (औत्पत्तिकी बुद्धि)
( Role)
Mati-jnana (Autpattiki Buddhi) 095555555555555555555550
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