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095555555555555555555555 5 शंका या प्रश्न मन में उठता उसका समाधान गुरु से प्राप्त कर लेता था। यह ज्ञान प्राप्त कर . पारंगत हो गया। दूसरा शिष्य अविनीत था। न गुरु की बात पर ध्यान देता और न ही पाठ पर + चिन्तन-मनन करता। गुरु से बार-बार प्रश्न पूछने में भी अपना अपमान समझता था। इस स्वभाव ॐ के कारण उसका अध्ययन भी दोषपूर्ण व अधूरा रह गया।
एक बार गुरु की आज्ञा से दोनों शिष्य किसी गॉव को जा रहे थे। मार्ग में उन्हें पैरों के ॐ बड़े-बड़े चिह्न दिखाई पड़े। अविनीत शिष्य ने दूसरे से कहा-“लगता है कि ये पद-चिह्न किसी + हाथी के हैं।" विनीत शिष्य ने उत्तर दिया-"नहीं मित्र, ये पद-चिह्न हाथी के नहीं, हथिनी के हैं। - वह हथिनी बॉई आँख से कानी है। यही नहीं हथिनी पर कोई रानी सवार है और वह सुहागिन ॐ तथा गर्भवती है। एक-दो दिन में ही वह पुत्र को जन्म देगी।"
__मात्र पद-चिह्नों के आधार पर इतनी बातें सुनकर अविनीत शिष्य को विश्वास नहीं हुआ। 卐 वह बोला-"ये सब बातें तुम किस आधार पर कह रहे हो?" विनीत शिष्य ने कहा-"भाई, 卐 : कुछ कदम आगे चलने पर तुम्हें सब-कुछ स्पष्ट समझ में आ जाएगा।" अविनीत रूठकर चुप हो
गया। कुछ समय के पश्चात्त अपने गंतव्य स्थान पर जा पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि फ़ गाँव के बाहर एक विशाल सरोवर के किनारे किसी वैभव-सम्पन्न व्यक्ति का पड़ाव पड़ा है।
तम्बुओं के एक ओर एक पेड़ से एक हथिनी बँधी है जिसकी बॉई आँख फूटी हुई है। दोनों के
शिष्य यह दृश्य देख ही रहे थे कि एक सुन्दर तम्बू से एक दासी निकली और पास ही खड़े एक 卐 राजपुरुष जैसे प्रभावशाली व्यक्ति के निकट जाकर बोली-“मंत्रिवर ! महाराज को जाकर बधाई
दीजिए। महारानी ने राजकुमार को जन्म दिया है।" है यह सब देख-सुनकर विनीत शिष्य दूसरे से बोला-“देखा मित्र, मैंने तुम्हें जो कुछ बताया था
वह सब सत्य निकला।” अविनीत कुंद मन से बोला-"हाँ ! तुम्हारा ज्ञान सही है।" ये बातें ॐ करते वे एक वृक्ष की छाया में विश्राम हेतु बैठ गए।
कुछ समय बाद एक वृद्धा स्त्री माथे पर पानी से भरा घडा लिए उधर से निकली। उसने दोनों युवकों को देखकर मन में सोचा-"ये दोनों विद्वान् ज्योतिषी दिखाई पड़ते हैं। इनसे पूछ्रे कि 9 मेरा विदेश गया हुआ पुत्र कब लौटेगा।" वह आगे बढ़ी और दोनों शिष्यों के निकट पहुँच * अपनी जिज्ञासा उन्हें बताई। तभी उसके सिर से घड़ा गिर पड़ा और फूट गया। सारा पानी मिट्टी ॐ में विलीन हो गया। यह देखकर अविनीत शिष्य बोल उठा-“बुढ़िया ! जैसे यह घडा गिरकर टूट 卐 गया है वैसे ही तेरा पुत्र भी मृत्यु को प्राप्त हो चुका है।" ॐ वृद्धा यह सुनकर दुःख से विह्वल हो उठी। पर तभी विनीत शिष्य बोल उठा-“मित्र ! ऐसा
मत कहो। इसका पुत्र तो अपने घर पहुंच चुका है।" फिर वृद्धा की ओर देखकर उसने कहा* “माता, आप शीघ्र अपने घर पधारें, आपका पुत्र वहाँ प्रतीक्षा कर रहा है।"
वृद्धा आश्वस्त हो अपने घर की ओर चली। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसका पुत्र धूल भरे पाँव लिए चबूतरे पर बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। आनन्द विभोर हो उसने पुत्र को गले + श्री नन्दीसूत्र
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