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L5 women, whereas the other broke into tears and said, "No! Not at all! 卐 Kindly don't slit the child. This is her son not mine. Please hand over
the child to her. Also, give her my share of the wealth. She will need 55 it to take proper care of the growing child. I will be content when I s see the boy hale and hearty."
The judge saw this spontaneous flow of affection and care and at once understood that she was the real mother. At no cost a mother 45 could tolerate killing of her son. Accordingly he released the son and 5 the wealth to the real mother and punished the impostor.
गाथा ३ के उदाहरण
(STORIES OF VERSE-3) १. मधु-छत्र-एक जुलाहे की पत्नी दुश्चरित्र थी। जुलाहा एक बार किसी कार्यवश दूसरे गाँव 5 गया तो उसकी स्त्री ने किसी अन्य पुरुष से अवैध सम्बन्ध बना लिये। अपने प्रेमी से मिलने वह 卐 गाँव के बाहर जाल-वृक्षों के एक झुरमुट में जाती थी जहाँ एक दिशा में मधु-छत्र था। जुलाहा + गाँव से लौट आया और उनके दिन सामान्य गति से बीतने लगे। स्त्री अवसर पा अपने प्रेमी से
मिलने उसी जाल-वृक्षों के झुरमुट में जाया करती थी। + एक दिन जुलाहे को मधु की आवश्यकता पड़ी। जब वह मधु खरीदने बाजार जाने को हुआ । ॐ तो उसकी पत्नी बोली-"मधु खरीदने की क्या आवश्यकता है, मैं तुम्हें एक विशाल छत्ता बता
देती हूँ।" वह जुलाहे को लेकर जाल-वृक्षों के झुरमुट में गई और छत्ता दिखा दिया। जुलाहे ने
छत्ता देखा और साथ ही उस निर्जन स्थल का भी भलीभाँति निरीक्षण किया। उसे अपनी ॐ औत्पत्तिकी बुद्धि से यह समझते देर न लगी कि इस निर्जन स्थल पर उसकी पत्नी के आने और ॥ म इस स्थल को भली प्रकार पहचानने का अन्य कोई कारण नहीं हो सकता, वह अवश्य ही किसी
अन्य व्यक्ति के प्रेम-पाश में बँधी है और यह उनका मिलन-स्थल है। म २. मुद्रिका-किसी नगर में एक पुरोहित रहता था। नगर में वह सत्यवादी और ईमानदार के E रूप में प्रसिद्ध था। एक बार कोई मजदूर उसकी प्रसिद्धि सुनकर उसके पास अपनी वर्षों की ॐ जमा पूँजी एक हजार मुहरें एक थैली में बॉध उसके पास रखकर कमाई करने के लिए यात्रा
पर निकल गया। बहुत समय बीतने पर वह लौटा और पुरोहित से थैली मॉगने आया। पुरोहित
ने उसे पहचानने से इन्कार कर दिया, बोला-“तू कौन है ? किस धरोहर की बात कर रहा है?" म मजदूर यह सुनकर ठगा-सा रह गया। अपनी सारी पूँजी खो देने के दुःख ने उसे पागल-सा ॐ बना दिया और वह राजमार्ग पर-“मेरी हजार मोहरों की थैली" पुकारता-पुकारता घूमने लगा।। • एक दिन उसने राज्य के मंत्री को रास्ते में जाते देखा तो उसी से मॉग बैठा-"पुरोहित जी ! # मेरी हजार मोहरों की थैली जो आपके पास धरोहर रख गया था, लौटा दीजिए।" * श्री नन्दीसूत्र
( २०६ )
Shri Nandisutra 05555555555555555555555555555C
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