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OFESSSSSSSSTERS55555555 y The king was astonished at this analysis. After daily chores he
went to his mother and after greetings told her about all what Rohak had said. The queen mother said "Son ! What Rohak says is probably true. If your attitudes are the result of my looking at 55 something with some momentary perversions in my mind then what
Rohak says is true. When you were in my womb I went to the Kuber 5 temple for worship. On my way back I saw a chandal and a washer卐 man. When arrived at the palace I saw a scorpion couple mating.
During all this period my mind was in a state of perversion giving
rise to pervert feelings. These feelings have influenced your attitude. 55 Otherwise you have only one father.”
The king was completely taken aback by the miracles of the astonishing wisdom of Rohak. When he arrived in his assembly he Cappointed Rohak as his prime minister
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दूसरी गाथा के उदाहरण
EXAMPLES OF THE SECOND VERSE १. भरत व शिला के उदाहरण पूर्ववत हैं।
२. पणित (प्रतिज्ञा-शर्त)-एक बार एक गाँव का भोलाभाला किसान एक शहर में ककड़ियाँ बेचने गया। नगर के द्वार पर पहुंचा ही था कि उसे एक धूर्त मिला। धूर्त किसान को देखते ही + समझ गया कि यह सीधासाधा शिकार है। उसके पास जाकर बोला-"भाई ! अगर मैं तुम्हारी
सारी ककडियाँ खा लूँ तो तुम क्या दोगे?" किसान ने चकित हो उसकी ओर देखा। इतनी सारी ॐ ककड़ियाँ खाने की बात उसे ठिठोली लगी। उसने भी उसी तरह उत्तर दिया-"तुम ये सब
ककड़ियाँ खा लोगे तो मैं तुम्हें ऐसा लड्ड दूंगा जो इस द्वार में न आ सके।" दोनों में यह शर्त लग गई और वहाँ खड़े कुछ राहगीरों को साक्षी बना लिया।
धूर्त ने एक ककड़ी उठाई और दाँतों से एक छोटा टुकड़ा काटकर चबा गया। वह ककड़ी 卐 वापस रख दी और दूसरी उठाकर फिर वही किया। इस प्रकार प्रत्येक ककड़ी में से एक-एक + टुकड़ा चबा लिया और बोला-“लो भाई ! मैंने तुम्हारी सब ककड़ियाँ खा लीं।" । म किसान ने आश्चर्य और गुस्से से कहा-"तुमने सारी ककडियाँ कहाँ खाईं ? ये सब पड़ी जो हैं।"
धूर्त ने कहा-“मैं अभी सिद्ध कर देता हूँ कि मैंने सब ककड़ियाँ खा ली हैं।" और वह म ककड़ियों के ढेर के पास खड़ा हो उन्हें बेचने की चेष्टा करने लगा। कई लोगों को पुकारकर *बुलाया-ककड़ियाँ ले लो। किन्तु जो भी आता वह यह कहकर लौट जाता कि ये ककड़ियाँ तो
खाई हुई हैं।" श्री नन्दीसूत्र
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