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(८) अगड-कूप-फिर एक अवसर देख राजा ने नटों के पास एक संदेश भेजा-“तुम्हारे गाँव 卐के कुएँ का जल बड़ा मीठा और शीतल है। उस कुएँ को हमारे पास भेज दो अन्यथा दण्ड के - भागी बनोगे।"
राजा की ऐसी असंभव-सी मॉग ने गाँव वालों को एक बार फिर भयभीत कर दिया। किन्तु उनके पास रोहक का सहारा था। उसी से उपाय पूछा। वे राजा के पास पहुंचे और बोले卐 "महाराज ! आप की आज्ञानुसार हमने अपने कुएं के पास जा उसे नगर में आपके पास आने 9
को बहुत समझाया। किन्तु वह बहुत ही संकोची और भीरू है, साथ ही शंकालु भी। वह हम पर विश्वास करने को ही तैयार नहीं है कि आप उसे बुला रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि नगर के 卐 किसी कुएँ को हमारे गाँव में ग्राम-कूप को समझाने भिजवा देवें। हमें पूरा विश्वास है कि
ग्राम-कूप अपने सजातीय बंधु की बात पर विश्वास कर तत्काल उसके साथ यहाँ चला ॐ आएगा।'' राजा मुस्कराकर चुप रहा। वह समझ गया यह सब रोहक की चतुर बुद्धि का खेल है।
इस प्रकार हर परीक्षा के साथ राजा का रोहक के प्रति आकर्षण बढ़ता गया और उसे ॐ आनन्द आने लगा।
(९) वन-खण्ड-कुछ दिनों का अन्तर देकर राजा ने एक और आज्ञा भेजी-“तुम्हारे गाँव के म पूर्व में जो वन-खण्ड है उसे पश्चिम में कर दो।"
__गाँव वाले सदा की तरह फिर रोहक की शरण में गए। उसने कहा-“यह तो बच्चों का खेल 卐 है। अपना गॉव तो छोटा-सा है। डेरा-डण्डा उठाकर हम गाँव को ही वन के पूर्व में बसा देते हैं।
वन-खण्ड स्वतः हमारे पश्चिम में हो जाएगा। नया गाँव बसाकर राजा को सूचना भेज दी गई
कि उसकी आज्ञा का पालन कर दिया गया है। राजा ने आकर देखा और मन ही मन रोहक की म प्रशंसा कर लौट गया। 卐 (१0) पायस-एक दिन अनायास ही राजा ने नटों के मुखिया को बुलाकर आज्ञा दी-“बिना + आग के खीर पकाकर हमारे लिए भेजो।" ॐ नटों ने फिर रोहक का सहारा लिया। उसने बताया-"चावलों को पहले पानी में भिगोकर + रख दो फिर उन्हें निकालकर दूध से भरी देगची में डाल दो। चूने का एक ढेर बना उसमें डेगची
को रखने की जगह बनाओ और डेगची को जमाकर रख दो। फिर चूने में पानी डाल दो। चूने म और पानी के मेल से उत्पन्न तीव्र ताप से खीर पक जाएगी।" है गाँव वालों ने रोहक के बताए उपाय से खीर बनाकर राजा के पास भेज दी। राजा स्वादिष्ट जखीर खा आनन्दित हुआ। जब उसने खीर बनाने का उपाय सुना तो रोहक की कुशाग्रता पर
मोहित हो गया। + (११) अतिग-अगली बार राजा ने रोहक को ही अपने पास बुलाकर कहा-'मेरी आज्ञा का
पालन करने वाला बालक मेरे निर्देशानुसार मेरे पास आवे। आते समय इन नियमों का पालन श्री नन्दीसूत्र
( १७६ )
Shri Nandisutra 055555555555555555550
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