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कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ, पासइ।
भावओ मं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ, पासइ। अर्थ-प्रश्न-परम्पर सिद्ध केवलज्ञान का स्वरूप कैसा होता है?
उत्तर-परम्पर सिद्ध केवलज्ञान अनेक प्रकार से बताया गया है। यथा-अप्रथम समय के सिद्ध, द्विसमय सिद्ध, त्रिसमय सिद्ध, चतुःसमय सिद्ध, यावत् दस समय सिद्ध, संख्यात समय सिद्ध, असंख्यात समय सिद्ध और अनन्त समय सिद्ध। इस प्रकार परम्पर सिद्ध केवलज्ञान का वर्णन है।
संक्षेप में वह चार प्रकार का है-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से केवलज्ञानी सर्व द्रव्यों को जानता-देखता है। क्षेत्र से केवलज्ञानी सभी क्षेत्रों (लोक-अलोक) को जानता-देखता है। काल से केवलज्ञानी सभी कालों को (भूत, वर्तमान, भविष्य) जानता-देखता है। भाव से केवलज्ञानी सभी भावों (सब द्रव्यों के मनःपर्यायों) को जानता-देखता है। 42. Question-What is this Parampar-Siddha Kewal-jnana ?
Answer-Parampar-Siddha Kewal-jnana is said to be of 9 numerous types-non-first samava Siddha. second samaya
Siddha, third samaya Siddha, fourth samaya Siddha, and so on 5 up to ten samayn Siddha, countable samaya Siddha, 41 uncountable samaya Siddha and infinite samaya Siddha. % This concludes the description of Parampar-Siddha Kewal4i jnana. 5 In short it is of four types—with reference to matter, area, ॐ , time and mode.
With reference to matter Kewal-jnani knows all matter or all fi material things.
With reference to area Kewal-jnani knows all areas including 41 the inhabited space and beyond.
With reference to time Kewal-jnani knows all time including 卐 present, past and future.
With reference to mode Kewal-jnani knows all modes si including the variations of matter and thoughts.
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केवलज्ञान का स्वरूप 0555
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Kewal.Janana 555555555550
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