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5555555555555555555555555555555555 卐 In common man's language the knowledge acquired through sense organs is also called direct knowledge. With this in view two other 145 names have been given to these two types-Indriya Pratyaksh Samvyavaharık Pratyaksh (mundanely direct) and No-indrıya Pratyaksh = Paramarthik Pratyaksh (transcendentally direct). सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष के प्रकार
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TYPES OF SAMVYAVAHARIK PRATYAKSH
४ : से किं तं इंदियपच्चक्खं? इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं,
तं जहा - ( १ ) सोइंदियपच्चक्खं, (२) चक्खिंदियपच्चक्खं, (३) घाणिंदियपच्चक्खं, (४) रसनेन्दियपच्चक्खं, (५) फासिंदियपच्चक्खं ।
सेतं इंदियपच्चक्खं ।
अर्थ- प्रश्न- इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर- इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान पाँच प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय-प्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, प्राणेन्द्रिय- प्रत्यक्ष, रसनेन्द्रिय-प्रत्यक्ष तथा स्पर्शनेन्द्रिय- प्रत्यक्ष |
4. Question – What is this Indriya Pratyaksh jnana ?
Answer-Indriya Pratyaksh-jnana is of five types-that which is acquired through the sense organ of-hearing (ears), seeing (eyes), smelling (nose), tasting (tongue), touching (skin or the whole body).
विवेचन - ज्ञान ग्रहण के माध्यम रूप पाँच इन्द्रियाँ हैं । एकेन्द्रिय आदि जाति के विकास-क्रम से गणना करने पर सामान्यतया इनका क्रम इस प्रकार होता है - स्पर्श, रसना, घ्राण (गंध), चक्षु तथा श्रवण (कान) | किन्तु यहाँ जाति के कारण स्वरूप पुण्य तथा क्षयोपशम को महत्त्व दिया है इस कारण क्रम विपरीत है। पुण्य व क्षयोपशम उत्कृष्ट होने पर जीव पंचेन्द्रिय के रूप में जन्म लेता है । जैसे-जैसे इसमें न्यूनता आती है वैसे-वैसे क्रम से चतुरेन्द्रिय आदि के रूप में जन्म लेता है। यहाॅ इसी क्रम से उल्लेख किया है।
Elaboration-The five sense organs in the body are the means of acquiring knowledge. If we count on the basis of the evolution of these sense organs normally the sequence is-touch, taste, smell, seeing and hearing. But here the emphasis is on piety and kshayopasham of karma which is the cause of being born in a
( 1919 )
ज्ञान मीमांसा
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The Discussion about Knowledge
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