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17 Anat, Pranat, Aran and Achyut
dimensions of gods Thirteenth to eighteenth
dimensions of gods 19. Graiveyak dimension of gods
infinitesimal part of -do- but up to the end an angul
of the fifth hell infinitesimal part of ___-do- but up to the end an angul
of the sixth hell infinitesimal part of -do- but up to the end an angul
of the seventh hell infinitesimal part of the complete Lok or the an angul
whole habited universe
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Anuttaraupapatik dimension of gods
不中听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听
अनानुगामिक अवधिज्ञान का स्वरूप
ANANUGAMIK AVADHI-JNANA १२ : से किं तं अणाणुगामियं ओहिणाणं ! ____ अणाणुगामियं ओहिणाणं से जहाणामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्टाणं काउं तस्सेव
जोइट्ठाणस्स परिपरंतेहिं परिपरंतेहिं परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्टाणं पासइ, ॐ अण्णत्थगए ण पासइ, एवामेव अणाणुगामियं ओहिणाणं जत्थेव समुप्पज्जइ तत्थेव ॥
संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा, संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ, ॐ अण्णत्थगए ण पासइ।
से तं अणाणुगामियं ओहिणाणं। * अर्थ-प्रश्न-अनानुगामिक अवधिज्ञान कैसा होता है ?
___ उत्तर-अनानुगामिक अवधिज्ञान वैसा ही होता है जैसे कोई व्यक्ति अग्नि के लिए एक ॐ बड़ा स्थान बनाकर उसमें आग जला दे और उस अग्नि द्वारा प्रकाशित चारों ओर के क्षेत्र
को और घूमकर जहाँ तक दृष्टि जाती हो वहाँ तक देखता है अन्य कुछ नहीं। इसी प्रकार अनानुगामिक अवधिज्ञान जिस क्षेत्र में उत्पन्न होता है उसी क्षेत्र में रहने पर संख्यात व असंख्यात योजन तक अपने प्रभाव क्षेत्र से सम्बन्धित तथा असम्बन्धित द्रव्यों को जानता-देखता है। अन्यत्र जाने पर यह सब नहीं देखता।
यह अनानुगामिक अवधिज्ञान का वर्णन है। (देखें चित्र ९) ____12. Question-What is this Ananugamik Avadhi-jnana ?
Answer-Ananugamik Avadhi-jnana is as if a person prepares a large area and burns a fire there and in the light of i this fire moves around and sees the illuminated area as far as the reach of his eyes and nothing beyond., Thus Ananugamik 4 अवधि-ज्ञान
Avadhi-Jnana OF5555555555555
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