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मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप
MANAH-PARYAVA-JNANA २८ : से किं तं मणपज्जवनाणं ? मणपज्जवनाणे णं भंते ! किं मणुस्साणं उप्पज्जइ अमणुस्साणं ? गोयमा ! मणुस्साणं, णो अमणुस्साणं। अर्थ-प्रश्न-भंते ! मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप क्या है ? यह ज्ञान मनुष्यों को उत्पन्न होता है अथवा अमनुष्यों (देव, नारक और तिर्यंच) को?
भगवान ने उत्तर दिया-गौतम ! यह मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है, अमनुष्यों (मनुष्येतर) को नहीं।
28. Question-What is this Manah-paryava jnana ?
Is this knowledge acquired by human beings or non-human 15 beings (gods, hell beings and animals)? __Bhagavan replied-Gautam, this knowledge is acquireds only by human beings and not by non-human beings.
२९ : जइ मणुस्साणं, कि सम्मुच्छिम-मणुस्साणं गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ? ____ गोयमा ! नो समुच्छिम-मणुस्साणं, गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं उप्पज्जइ। ___ अर्थ-प्रश्न-यदि मनुष्यों को उत्पन्न होता है तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों को होता है अथवा गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को?
उत्तर-गौतम ! सम्मूर्छिम मनुष्यों को नहीं, गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है।
29. Question--When you say that it is acquired by human 4 beings do you mean the sammurchim humans or the y 4 garbhavyutkrantik (born out of a womb, placental) humans ?
Answer-Gautam ! It is acquired only by the 5 garbhavyutkrantik humans and not by the sammurchim 4 humans.
विवेचन-सम्मूर्छिम मनुष्य सूक्ष्म मनुष्याकार जीव होते हैं जो गर्भज (गर्भव्युत्क्रान्तिक अर्थात् गर्भ से उत्पन्न अर्थात् सामान्य) मनुष्य के मल-मूत्र, स्वेद आदि अशुचि से उत्पन्न होते हैं। इनका :
आकार अंगुल के असंख्यातवें भाग के बराबर होता है। ये संज्ञाहीन, मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी, अपर्याप्त ॐ तथा अन्तर्मुहूर्त काल की आयु वाले होते हैं। (विस्तृत वर्णन प्रज्ञापनासूत्र, प्रथम पद से देखें) मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप
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