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ELEEEEEEEEEEEEEEELES existing in an area extending to countable or uncountable i
yojans in front of him. With the help of Margatah Antagat (rear卐 peripheral) Avadhi-jnana the knower (scholar) observes in 卐
general and understands in particular all physical objects $
existing in an area extending to countable or uncountable #yojans at his back. With the help of Parshvatah Antagat (flanki peripheral) Avadhi-jnana the knower (scholar) observes in
general and understands in particular all physical objects ! 45 existing in an area extending to countable or uncountable \ yojans at his flanks. With the help of Madhyagat (central) 卐 Avadhi-jnana the knower (scholar) observes and understandsy
through all atmapradeshas (soul-bits) all physical objects 5 existing in an area extending to countable or uncountable 45 yojans in all spatial directions (toward cardinal and is intermediate points of the compass).
This concludes the description of the attributes of Anugamik 卐 Avadhi-jnana. - विवेचन-अन्तगत अवधिज्ञान सीमाबद्ध होता है और मध्यगत असीम। मध्यगत अवधिज्ञान ॐ देव, नारक तथा तीर्थंकर इन तीनों को तो नियमतः स्वाभाविक रूप से होता है। तिर्यंचों अथवा + पशु-पक्षी आदि प्राणियों को केवल अन्तगत अवधिज्ञान होने की संभावना होती है। किन्तु मनुष्यों को दोनों प्रकार के आनुगामिक अवधिज्ञान होने की संभावना होती है।
संख्यात तथा असंख्यात योजनों के उल्लेख से यह इंगित होता है कि परिमाणतः (क्षेत्र-सीमा) ॐ अवधिज्ञान के अनेकों भेद हो सकते हैं। उदाहरणार्थ-रत्नप्रभा नरक के जीवों को जघन्य 5 (न्यूनतम) साढ़े तीन कोस तथा उत्कृष्ट (अधिकतम) चार कोस तक का अवधिज्ञान बताया गया
है। इसी प्रकार सौधर्मकल्प के देवों को न्यूनतम एक अंगुल के असंख्यातवें भाग के बराबर क्षेत्र ॐ और अधिकतम रत्नप्रभा के नीचे चरमान्त तक का अवधिज्ञान होता है।
नारकों तथा देवों के अवधिज्ञान का कोष्ठकलोक जघन्य
उत्कृष्ट १. तमस्तमा नरक आधा कोस
एक कोस २. तमःप्रभा नरक एक कोस
डेढ कोस ३. धूमप्रभा नरक डेढ कोस
दो कोस म ४. पंकप्रभा नरक दो कोस
अढाई कोस ५. बालुकाप्रभा नरक अढाई कोस
तीन कोस श्री नन्दीसूत्र
( ८८ )
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