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Question-What is the cause of this kshayopashamik ॐ avadhi-jnana ?
Answer-The cause of this kshayopashamik avadhi-jnana is 4 the extinction of the avadhi-jnana veiling karmas that have
precipitated or attained fruition and the suppression of those karmas that have not precipitated.
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अवधिज्ञान के छह भेद
SIX CLASSES OF AVADHI-JNANA ९ : अहवा गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिणाणं समुप्पज्जति। तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा
(१) आणुगामियं, (२) अणाणुगामियं, (३) वड्डमाणयं, .. (४) हायमाणयं, (५) पडिवाइत, (६) अपडिवाइयं।
अर्थ-और भी,ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि गुणसम्पन्न अनगार को जो अवधिज्ञान ॐ उत्पन्न होता है वह संक्षेप में छह प्रकार का होता है-(१) आनुगामिक, (२) अनानुगामिक, (३) वर्द्धमान, (४) हीयमान, (५) प्रतिपातिक, तथा (६) अप्रतिपातिक।
9. Also, the avadhi-jnana acquired by an ascetic having f qualities like right knowledge, perception, and conduct is briefly 5
of six classes-1. Anugamik, 2. Ananugamik, 3. Vardhaman, 4. Heeyaman, 5. Pratipatik, and 6. Apratipatik.
विवेचन-(१) आनुगामिक-वह जो निरन्तर अनुसरण करे या साथ चले। जैसे-चलते हुए 卐 व्यक्ति के साथ नेत्र, सूर्य के साथ आतप/धूप तथा चन्द्र के साथ चाँदनी। इसी प्रकार जो निरन्तर ज्ञानी के साथ-साथ रहे वह आनुगामिक अवधिज्ञान है।
(२) अनानुगामिक-आनुगामिक के विपरीत वह जो साथ न चले। यह ज्ञान क्षेत्र-विशेष के बाह्य निमित्त से उत्पन्न होता है तथा ज्ञानी के वहाँ से प्रस्थान के साथ लुप्त हो जाता है। जैसेके एक स्थान पर स्थिर दीपक का प्रकाश चलने वाले के साथ नहीं चलता। 9 (३) वर्द्धमान-बढ़ने वाला। आग में जैसे-जैसे ईंधन डाला जाता है वैसे-वैसे वह अधिक म । प्रज्वलित होती जाती है। उसी प्रकार जैसे-जैसे परिणामों की शुद्धि होती जाती है वैसे-वैसे जो
वृद्धि प्राप्त करता जाये उसे वर्द्धमान अवधिज्ञान कहते हैं। अवधि-ज्ञान
( ८१ )
Avadhi-Jnanay
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