Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ०८ सू०४ सांपराधिककर्मबन्धस्वरूपनिरुपणम् ७७ पुरुषो वध्नाति, तथैव यावत् नोस्त्रीनोपुरुषनोनपुंसको बध्नाति ? गौतम ! स्त्री अपि वध्नाति, पुरुषोऽपि बध्नाति, यावत्-नपुंसकोऽपि बध्नाति, अथवा एते च अपगवेदश्च बध्नाति, अथवा एते च अपगतवेदाश्च बध्नन्ति । यदि भदन्त! अपगतवेदश्च वि बंधइ, देवी वि बंधइ ) नारक जीव भी सांपरायिक कर्म को बांधता है, तिथंच भी बांधता है ? तिर्यच स्त्री भी बांधती है, मनुष्य भी घांधता है, मनुष्य स्त्री भी बांधती है, देव भी बांधता है और देवी भी बांधती हैं। (तं भंते ! किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ तहेव जाव नोइत्थी, नोपुरिसनोनपुंसओ बंधइ ) हे भदन्त ! सांपरायिक कर्म को क्या स्त्री बांधती है ? पुरुष बांधता है ? इसी तरह से क्या यावत् नो स्त्री, नो पुरुष और नो नपुंसक बांधता है ? (गोयमा ) हे गौतम ! ( इत्थी वि बंधइ, पुरिसो विधइ, जाव नपुंसगो वि बंधइ) सांपरायिक कर्म को स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है, यावत् नपुंसक भी बांधता है। (अहवेए य अवगय वेदोय बंधइ) अथवा ये और वेद रहित स्त्री वगैरह एक जीव भी बांधता है, (अहवेए य अवगयवेया य पंधति) अथवा-येऔर वेदरहित अनेक जीव भी बांधते हैं। (जइ भंते ! अवगयवेयो यबंधइ, अवगयवेया य बंधंति, तं भंते ! कि इत्थी पच्छाकडो યિક કર્મ નારક જીવ પણ બાંધે છે, તિર્યંચ પણ બાંધે છે, તિર્ય ચિણી પણ બાંધે છે, મનુષ્ય પણ બાંધે છે, મનુષ્ય સ્ત્રી પણ બાંધે છે, દેવ પણ બાંધે છે भने वा ५ मांधे छे. (तं भंते ! कि' इत्थी बधइ, पुरिसो बधइ, तहेव जाव नो इत्थी नो पुरिसनो नपुंसओ बधइ) 3 महन्त! सांप।यि अभी શું સ્ત્રી બાંધે છે? શું પુરુષ બાંધે છે? એજ પ્રમાણે શું નો સ્ત્રી, ને પુરુષ કે નો નપુંસક બાંધે છે?” ત્યાં સુધીના પૂર્વોક્ત પ્રશ્નો અહીં પણ ગ્રહણ કરવા.
(गोयमा ) 3 गौतम ! (इत्थी वि बधइ, पुरिसो वि बंधह, जाव नपु. सगो वि बंधइ) सांप।यि ४ श्री ५ मांधे छ, पुरुष ५ मा छ, भने मधुस पय-तना ४१ ५ मांधे छे. ( अहवेएय अवगयवेदो य बधई) અથવા ઉપર્યુક્ત વેદસહિત છ તથા વેદરહિત સ્ત્રી વગેરે એક જીવ પણ मांधे छ. ( अहवेए य अवगयवेया य बंधति) 4241 वेहसडित ७ तथा દરહિત અનેક છે પણ બાંધે છે.
(जइ भंते ! अवगयवेयो य बधइ, अवायवेया य बधति, ते भंते ! कि इत्थीपच्छाकडो बंधइ, पुरिस पच्छाकडो बधइ० १ ) 3 महन्त ! ने मा सांप.
श्री.भगवती सूत्र : ७