Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ ० ९ सू० ३ प्रयोगबन्धनिरूपणम् २२१ औदारिकशरीरप्रयोगबन्धः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-एगिदियओरालिपसरीरप्पओगबंधे, बेंदियओरालियसरीरप्पओगंबधे, जाव पंचिंदियओरालियसरीरप्प
ओगबंधे' तद्यथा-एकेन्द्रियौदारिकशरीरमयोगबन्धः, द्वीन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगबन्धः, यावत्-त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोबन्धः, गौतमः पृच्छति-' एगिदियओरालियसरीरप्पओगधेगं भंते ! काविहे पण्णत्ते ? ' हे भदन्त ! एकेन्द्रियौदारिकशरीरमयोगबन्धः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह‘गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! एकेन्द्रियौदारीकशरीरप्रयोगबन्धः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-पुढविक्काइयएगिदिय ओरालियसरीरप्पओगबंधे' उत्तर में प्रभु करते हैं-'गोयमा' हे गौतम औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध 'पंचविहे पण्णत्ते ' पांच प्रकार का कहा गया है । ' तं जहा' जो इस प्रकार से है-' एगिदियओरालियसरीरप्पओगवंधे, बेइंदिय ओरालिय. सरीप्पओगबंधे, जाव पंचिंदिय ओरालियसरीरप्पओगबंधे' एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध, बेइन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध, ते इन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध, चौ इन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध और पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध । ____अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' एगिदियओरालियसरीरप्पओगधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! जो एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध है-वह कितने प्रकार का कहा गया है ? प्रभु उत्तर में कहते हैं-'गोयमा' है गौतम । एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध 'पंचविहे पण्णत्ते ' पांच प्रकार का कहा गया है । ' तं जहा' जैसेपण्णत्ते १" महन्त ! हा२ि४ शरीर प्रयोगमा ४१२ने हो छ ?
महावीर प्रभुनी उत्त२-" गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते-तंजहा" . ગતમ! દારિક શરીર પ્રગ બંધના નીચે પ્રમાણે પાંચ પ્રકાર કહ્યા છે— " एगिदियओरालियसरीरप्पओगबधे, बेइंदियओरालियसरीरप्पओगबधे, जाव विदिय ओरालियसरीरप्पओगबधे" (१) सन्द्रिय सौहार शरी२ प्रयोग બંધ, (૨) બેઇન્દ્રિય દારિક શરીર પ્રયોગ બંધ, (૩) તેઈન્દ્રિય ઔદ્યારિક શરીર પ્રગ બંધ, (૪) ચતુરિન્દ્રિય દારિક શરીર પ્રયોગ બંધ અને (૫) પંચેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર પ્રયોગ બંધ.
गौतम स्वाभाना प्रश्न-एगिदिय ओरालिय सरीरप्पओग बधेण भते ! का विहे पण्णते ? 3 महन्त ! मेन्द्रिय मोहार शरी२ प्रयोग કેટલા પ્રકાર છે?
શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૭.