Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्र करोति, सप्ताष्टभवग्रहणानि पुनः नातिक्राम्यति, । एवं दर्शनाराधनापि, एवं चारित्राराधनामपि ॥ मू० २ ।।
टीका-'काविहाणं भंते ! आराहणा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधा कियलकारा खलु आराधना निरतिचारतयाऽनुपालना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा! तिविहा आराहणा पण्णत्ता' हे गौतम ! त्रिविधा आराधना प्रज्ञप्ता ? ' तं जहा-नाणाराहणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा' तद्यथा-ज्ञानासिज्झइ, जाव अंतं करेइ, सत्तट्ठभवग्गहणाइं पुण नाइक्कमइ, एवं दंस णाराहणं पि, एवं चरित्ताराहणं पि) कोइएक जीव तीसरे भव में सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुम्वोंका अंत कर देता है। यह जीव सात आठ भव से आगे भव धारण नहीं करता है। इसी तरह से जघन्य दर्शना. राधना और चारित्राराधना के विषय में भी जानना चाहिये।
टीकार्थ-आराधना का प्रकरण होने से सूत्रकार प्रकार सहित आराधना की प्ररूपणा इस सूत्र द्वारा कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-(कइविहाणं भंते ! आराहणा पण्णत्ता) हे भदंत ! आराधना कितने प्रकार की कही गई है ? ज्ञानादि गुणों का अतिचार रहित होकर पालन करना इसका नाम आराधना है। उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (तिविहा आराहणा पण्णत्ता) आराधना तीन प्रकार की कही गई है। (तं जहा) जो इस प्रकार से है(नाणाराहणा, दमणाराहणा, चरित्ताराहणा) ज्ञानाराधना, दर्शनारा. अंत करेइ, सत्तट्ट भवग्गहणाई पुण नाइक्कमइ, एवं दसणाराहण पि, एवं चरिताराहण पि) 8 श्री समi सिद्ध थाय छ भने समस्त દુઃખનો અંત કરે છે તે જીવ સાત આઠ ભવથી વધારે ભવ કરતાં નથી. એજ પ્રમાણે જઘન્ય દર્શનારાધના અને જઘન્ય ચારિત્રારાધનાના વિષયમાં
પણ સમજવું.
ટીકાર્થ—આરાધનાનું નિરૂપણ ચાલી રહેલું હોવાથી સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા પ્રકાર સહિત આરાધનાની પ્રરૂપણ કરે છે–
ગૌતમ સ્વામી આ વિષયને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે छ:-" कइ विहाण भते ! आराहणा पण्णत्ता १" महन्त ! माराधना કેટલા પ્રકારની કહી છે? જ્ઞાનાદિ ગુણનું અતિચાર રહિત પાલન કરવું, તેનું નામ આરાધના છે.
महावीर प्रसुन उत्तर-“ तिषिहा आराहणा पण्णता" गौतम! माराधना र प्रा२नी ही छ. " तंजहा" २ ३ ४ मा प्रभारी.
श्री.भगवती सूत्र : ७