Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ०३१ सू०१ अश्रुत्वाधर्मादिलाभनिरूपणम् १७३ च्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलनाणं उप्पा. डेज्जा ? ' हे भदन्त ! कश्चित्पुरुषः केवलिनो वा सकाशात् , यावत् तत्पाक्षिकोपासिकाया वा सकाशात् अश्रुत्वाऽपि खलु केवलज्ञानमुत्पादयेत् किम् ? भगवानाह-' एवं चेव नवरं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए भाणियव्वे, सेसं तं चेव' एवमेव नवरं केवलज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयो भणितव्यः शेषं तदेवपूर्ववदेव नवरं विशेषस्तु अत्र केवलज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयो भणितव्यः ' से मनः पर्यवज्ञान की उत्पत्ति मनः पर्यय ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से होती है ऐसा कहना चाहिये।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं (असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तपक्खिय उवामियाए वा केवलनाणं उप्पाडेज्जा) हे भदन्त ! क्या कोई जीव ऐसा भी होता है जो केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से विना सुने भी केवलज्ञान को उत्पन्न कर लेता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(एवं चेव नवरं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए भाणियव्वे ) हे गौतम ! हां, कोई ऐसा भी जीव होता है जो केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से विना सुने भी केवलज्ञान को उत्पन्न करलेता है। और कोई ऐसा होता है केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से विना सुने केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता है। जो विना सुने भी केवलज्ञान उत्पन्न कर लेना है उस जीव का केवल ज्ञानावरणीयकर्मों का क्षय होता है और जो केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता है उसको केवल ज्ञानावरणीयकों का क्षय नहीं होता है। (से
गौतम २१॥भीना प्रश्न-( असोच्चाणं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खिय उवासियाए वा केवलनाण उप्पाडेज्जा ?) 8 महन्त ! शुध ०१ मेवाय છે કે જે કેવલી પાસે અથવા તેમના શ્રાવકાદિ પાસે કેવળજ્ઞાનત્પાદક વચનો શ્રવણ કર્યા વિના કેવળજ્ઞાન ઉત્પન્ન કરી શકે છે?
महावीर प्रभुने। उत्तर-( एवं चेव नवर केवलनाणावरणिज्जाण कम्माण खए भाणियव्वे) गौतम ! मी पशु पूर्वरित ४थन प्रमाणेनुं ४थन सभा જવું. એટલે કે કોઈ જીવ એવો પણ હોય છે કે જે કેવલી આદિની સમીપે ઉપદેશ શ્રવણ કર્યા વિના કેવળજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ કરનાર જીવના કેવળજ્ઞાનાવરણીય કર્મોનો ક્ષય થઈ ગયો હોય છે. પરંતુ કોઈ જીવ એ પણ હોય છે કે જે તેમને તે પ્રકારને ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરી શકતું નથી, १२६५ में सेवा न वणज्ञानाशीय उभाना क्षय थये। रात नथी. “से
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭