Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 745
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ ३० ३१सू०६ श्रुत्वाप्रतिपन्नावधिशानिनिरूपणम् ७३३ भवति, । यदि सकषायी भवति, स खलु भदन्त ! कतिषु कषायेषु भवति ? गौतम ! चतुषु वा, त्रिषु वा, द्वयोर्वा, एकस्मिन् वा भवति, चतुर्षु भवन् संज्वलनक्रोधमानमायालोभेषु भवति, त्रिषु भवन् संज्वलनमानमायालोभेषु भवति, द्वयो भवन् संज्वलनमायालोभयोर्भवति, एकस्मिन् भवन् संज्वलने लोभे भवति । तस्य या क्षीणकषाय वाला होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (नो उवसंत. कसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा) वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी उपशान्त कषायवाला नहीं होता है, किन्तु क्षीणकषायवाला होता है । (जइ सकसाई होज्जा, कइसु कसाएसु होज्जा) हे भदन्त ! यदि वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी सकषायी होता है तो कितनी कषायों में होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (चउसु वा तिस्तु वा, दोसु वा एक्कंमि वा होज्जा) वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी चार कषायों में, या तीन कषायों में, या दो कषायों में या एक कषाय में होता है। (चउसु होज्जमाणे संजलणकोहमाणमायालोभेलु होज्जा, तिसु होज्जमाणे संजलण माणमायालोमेसु होज्जा, दोस्तु होज्जमाणे संजलणमायालोभेस्लु होज्जा, एगम्मि होज्जमाणे संजलणे लोभे होजा) यदि वह चार कषायों में होता है तो संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभ इन चार कषायों में होता है। यदि वह तीन कषायों में होता है तो संज्वलन संबंधी मान, माया और लोभ इन तीन कषायों में होता है। यदि वह पायवाणी य १ (गोयमा !) गौतम ! (नो उवनतकसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा) ते श्रत्वा अवधिज्ञानी ७५शान्त पायवाणे हात नथी, पक्षीय षायवाणे डाय छे. (जइ सकसाई होज्जा, कइसु कसाएस होज्जा) B महन्त ! नेते श्रवा अवधिज्ञानी सपायी जाय छ, तटसा કષાવાળો હોય છે? (गोयमा !) गौतम ! (चउसु वा, तिसु वा, दोसु वा, एकमि वा होज्जा) તે શ્રવા અવધિજ્ઞાની ચાર, અથવા ત્રણ અથવા બે અથવા એક કષાયવાળે डाय छे. ( उसु होज्जमाणे सजलणकोहमाणमायालोमेसु होज्जा, तिसु होजमाणे संजलणमाणमायालोभेसु होज्जा, दोसु होज्जमाणे सजलणमायालोभेस होज्जा, एगम्मि होजमाणे सजलणे लोभे होजा) नेते या२ पायावाणे હોય છે, તે તે સંજવલન ક્રોધ, સંજવલન માન, સંજવલન માયા અને સંજવલન લેભયુકત હોય છે. જે તે ત્રણ કષાયેવાળે હેય છે, તે તે જીવમાં સંજવલન માન, માયા અને લેભ, આ ત્રણ કષાયને સ: श्रीभगवतीसूत्र : ७

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