Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 748
________________ ७३६ भगवतीसूत्रे सिध्यति वा, यावत् अन्तं करोति । तस्य खलु भदन्त ! शिष्या अपि सिध्यन्ति, यावत् , अन्तं कुर्वन्ति ? हन्त, सिध्यन्ति यावत् अन्तं कुर्वन्ति, । तस्य खलु भदन्त ! पशिष्याअपि सिध्यन्ति यावत् अन्तं कुर्वन्ति, एवमेव यावत् अन्तं कुर्वन्ति । स खलु भदन्त ! किम् अवं भवति ? यथैव अश्रुत्वा यावत् तदेकदेशभागे भवति । ते समस्त दुःखों का अन्त करतो है ? ( हंता, सिज्झइ वा जाव अंतं करेइ) हां, गौतम! वह श्रुत्वा केवली सिद्ध होता है, वुद्ध होना है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है । (तस्स णं भंते ! सिस्सा वि सिझंति, जाव अंतं करेंति) हे भदन्त ! उस श्रुत्वा केवली के शिष्य भी क्या सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ? (हंता, सिझंति जाव अंतं करेंति ) हां, गौतम ! उस श्रुत्वा केवली के शिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। (तस्स णं भंते ! पसि. स्सा वि सिज्झंति जाव अंतं करेंति ) हे भदन्त ! उस श्रुत्वा केवली के प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। (एवं चेच जाव अंत करेंति ) हे गौतम ! ऐमा ही है यावत् वे समस्त दुःखों का नाश करते हैं। (से णं भंते ! कि उडूं होजा) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा केवली के क्या उर्ध्वलोक में होता है ? इत्यादि प्रश्न। (जहेव असोच्चाए जाव तदेक देसभाए होजा ) हे गौतम ! इस विषय में मोनो मत ४२ छ ? (हता, सिज्झइ वा जाव अंत करेइ ) , गौतम ! તે શ્રવા કેવલી સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે અને સમસ્ત દુઃખનો અન્ત ४२ छ. ( तस्स णं भंते ! सिरसा वि सिज्झति, जाव अंत करेंति ? ) महन्त! તે શ્રવા કેવલીના શિષ્યો પણ શું સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે અને સમસ્ત मानो मत ४२ छ ? (हता, सिझति, जाव अंत करे ति ) &ी, गौतम ! તેમના શિષ્યો પણ સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે અને સમસ્ત દુઃખને અંત रे छे. (तस्स णं भंते ! परिस्मा वि सिज्झति जाव अंत करेति ? ) महन्त ! તે છત્વા કેવલીના પ્રશિષ્યો પણ શું સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે અને સમસ્ત हुभाना मत ४२ छे ? ( एवं चेव जाव अंत करें ति ) , गौतम! तेमा ५५ सिद्ध थाय छे, मुद्ध थाय छ भने समस्त जाने। मत ४२ छे. (सेणं भंते ! किं उड्ढे होज्जा ?) 3 महन्त ! शुत श्रुत्वा पसी Saraswi हाय છે. કે અલકમાં હોય છે કે તિર્યદકમાં હોય છે? વગેરે પ્રશ્નો. (जहेव असोच्चाए जाव तदेकदेसभाए होज्जा) के गौतम ! म विषयनी વક્તવ્યતા અશ્રુત્વા કેવલીની વક્તવ્યતા પ્રમાણે સમજવી. “અઢી દ્વીપ સમુ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭

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