Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे कतिषु ज्ञानेषु भवति ? गौतम ! त्रिषु-आभिनिबोधिकज्ञान श्रुतज्ञाना-ऽवधिज्ञानेषु भवति । स खलु भदन्त ! कि सयोगी भवति, अयोगी भवति ? गौतम सयोगी. भवति, नो अयोगी भवति, यदि सयोगी भवति, कि मनोयोगी भवति, वचोयोगी
पूर्वोक्त अवधिज्ञानी की लेश्यादि वक्तव्यता ' से णं भंते ! कइलेस्सा होज्जा' इत्यादि।
सूत्रार्थ-(से णं भंते ! कइलेस्सास्तु होज्जा) हे भदन्त ! उस अव. धिज्ञानी जीव के कितनी लेश्याएँ होती हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिसु विसुद्धलेस्सासु होज्जा) उस अवधिज्ञानी जीवको तीन विशुद्ध लेश्याएँ होती है (तंजहा) जो इस प्रकार से हैं-(तेउलेस्साए, पद्मलेस्साए, सुकलेस्साए) तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या-(से णं कह नाणेसु होज्जा) हे भदन्त ! वह अवधिज्ञानी जीव कितने ज्ञानों में होता है ? अर्थात् अवधिज्ञानी जीव के कितने ज्ञान होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिसु आभिणिबोहियनाणसुयनागओहिनाणेसु होज्जा) अवधिज्ञानी जीव आभिनियोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानों में होता है। (से णं भंते ! कि सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा ) हे भदन्त ! वह अवधिज्ञानी जीव सजोगी होता है या अजोगी होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सजोगी होज्जा नो अजोगी होज्जा) अवधिज्ञानी जीव सजोगी होता है, अयोगी नहीं होता है। (जह स.
પૂર્વોક્ત અવધિજ્ઞાનની વેશ્યાદિની વક્તવ્યતા(से णं भंते ! कह लेसासु होज्जा १ ) त्यासूत्राथ-(से गं भंते ! कइ लेस्सासु होज्जा ?) महन्त ! सवधिज्ञानी
हैटली वेश्यामापाणे डाय छ १ (गोयमा ! तिसु विसुद्धलेस्सासु होज्जा तजहा) र गौतम ! अवधिज्ञानी ७१ नीय प्रमाणे त्र विशुद्ध वेश्यामेथी युश्त डाय छे. (तेउलेसोए, पहमलेस्साए, सुक्कलेस्साए ) तन्नेवेश्या, ५वेश्या भने शुसवेश्या. ( सेण कइ नाणेसु होज्जा ? ) 3 लहन्त ! अधिशानी ७१ mai ज्ञानवाणी य छ १ (गोयमा ! तिसु आभिणियोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाणेसु होज्जा) गौतम ! अवधिज्ञानी मां नीचे प्रमाणे त्र) ज्ञाननी समाव य छे. (१) मालिनिमाधि ज्ञान, (२) श्रुतज्ञान अने (3) भवधिज्ञान. (से गं भंते ! कि सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा) Hord! भवाविज्ञानी १ सयाजी डाय छे है मय डाय छ १ (गोयमा! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा) गौतम विज्ञानी सयोगी साय छे भयोमा खाता नया
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭