Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 716
________________ ७०४ भगवतीसूने खलु आधिज्ञानप्रतिपन्नस्य अध्यवसायाः प्रशस्ता भवन्ति ? अपशस्ता वा भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! पसत्या, नो अपत्सथा' हे गौतम ! अवधिज्ञानप्रतिपन्नस्य प्रशस्ता एव अध्यवसाया भवन्ति, नो अपशस्ता अध्यवसाया भवन्ति, तथाहि-नाप्रशस्ताध्यवसानस्य पुरुषस्य विभङ्गज्ञानमवधिज्ञानरूपेण परिणतं भवति अत एव अवधिपरिणतविभङ्गज्ञानस्य प्रशस्तान्येवाध्यवसायस्थानानि भवन्ति। ' से णं गोयमा ! तेहिं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं बड़माणेहिं ' गौतम ! स खलु प्रतिपन्नावधिज्ञानी तैः पूर्वोक्तैः प्रशस्तैः अध्यवसानैः बर्द्धमानै ' अणंतेहितो नेरइयभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ ' अनन्तेभ्यो नैरयिकभवग्रहणेभ्यःआत्मानं विसंयोजयति विमोचयति तत्याप्तियोग्यतायाः अपनोदात् ' अगं ते. अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(तेणं भंते ! किं पसत्था अप्पसस्था) हे भदन्त । जो उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं वे क्या प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं(गोयमा पसत्था नो अपसत्था) हे गौतम ! उस प्रतिपन्न अवधिज्ञानी पुरुष के जो असंख्यात अध्यवसाय होते हैं-वे प्रशस्त ही होते हैं अप्रशस्त नहीं होते हैं। क्यों कि अप्रशस्त अध्यवसायवाले पुरुष का विभंगज्ञान अवधिज्ञानरूप परिणत नहीं होता है। इसलिये अवधिज्ञान में परिणत विभंगज्ञानवाले जीव के अध्यवसायस्थान प्रशस्त ही होते हैं। (से णं गोयसा ! तेहिं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं वट्टमाणेहिं ) हे गौतम ! वह प्रतिपन्न अवधिज्ञानी मनुष्य उन वर्धमान प्रशस्त अध्यवसायों द्वारा 'अणंतेहिंतो नेरइयभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) अनन्त नैरयिक भवग्रहणों से अपने को बचा लेता है। (अणंतेहितो गौतम स्वाभीन। प्रश्न--( ते णं भंते ! किं पसत्था, अपसत्था' 3 ભદન્ત ! તેના તે અસંખ્યાત અધ્યવસાય પ્રશસ્ત હોય છે કે અપ્રસ્ત હોય છે? महावीर प्रभुने। उत्तर--(गोयमा ! पसत्था नो अपसत्था ) गौतम ! તેના તે અસંખ્યાત અધ્યવસાય પ્રશસ્ત જ હોય છે, અપ્રશસ્ત લેતા નથી. કારણ કે અપ્રશસ્ત અધ્યવસાયવાળા પુરુષનું વિર્ભાગજ્ઞાન અવધિજ્ઞાનરૂપે પરિણમતું નથી. તેથી અવધિજ્ઞાનીરૂપે પરિણમન પામેલા વિર્ભાગજ્ઞાનીના અધ્યવસાય પ્રશસ્ત જ हाय छे. ( से णं गोयमा ! तेहिं पसत्थे हि अज्झवसाणेहि वट्टमाणेहि ) ગૌતમ! તે પ્રતિપન્ન અવધિજ્ઞાની પુરુષ તે વર્ધમાન પ્રશસ્ત અથવસાય દ્વારા ( अण तेहिंतो नेरइयभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) मत नैरयि सव. हाथी पाताना मात्भाने भयावी छ, ( अणतेहितो तिरिक्खजोणिय भव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭

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