Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 724
________________ ७१२ भगवतीसत्रे पर्यायादिभेदेन नामादिभेदेन वा कथयेद् वा, प्ररूपयेद् वा स्वरूपतः कथयेद् वा ? भगवानाह - ' णो इणडे समट्ठे ' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः अश्रुत्वा प्राप्तकेवलज्ञानः केवली, केवलिप्रज्ञप्तं धर्मं नाख्यापयेत्, न वा प्रज्ञापयेत्, नेत्र वा प्ररूपयेत्, किन्तु ' जगत्थ एगणाएण वा, एगवागरणेण वा ' नान्यत्र एकज्ञातेन वा एकोदाहरणेन, एकव्याकरणेन वा एकप्रश्नस्योत्तरदानेन वा । गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा ? ' हे भदन्त ! स खलु अश्रुस्वा केवली कि प्रत्राजयेद रजोहरणसदोरकमुखवस्त्रिका दिद्रव्यलिङ्गदानेन शिष्येभ्यः द्वारा या नामादि भेद द्वारा उसकी प्रज्ञापना कर सकता है क्या ? या स्वरूपतः उसका कथन कर सकता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ( णो इण सम) हे गौतम! जिसने केवली आदि से विना सुने केवलज्ञान प्राप्त किया है ऐसा केवली केवली द्वारा प्रतिपदित धर्म की प्ररूपणा नहीं कर सकता है, न उसकी वह प्रज्ञापना कर सकता है और न वह उसका स्वरूपतः प्रतिपादन कर सकता है। किन्तु - (णण्णस्थ एगणाएण वा एग वागरणेण वा) वह एक उदहरण दे सकता है और एक प्रश्न का उत्तर दे सकता है। इसके सिवाय वह धर्म का उपदेश नहीं दे सकता है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते! पञ्चावेज़ वा, मुंडावेज वा ) वह अश्रुत्वा केवली क्या प्रव्रज्या - रजोहरण सदोरक मुखवस्त्रिका आदि रूप द्रव्यलिङ्ग का अपने शिष्यों के लिये देने रूप છે તેને અશ્રુત્વા કૈવલી કહે છે) કેવલી દ્વારા પ્રતિપાદિત ધમને સામાન્ય કે } विशेष३ये प्रतिपादित उरी शडे छे ? " परूवेज्ज वा " वथन पर्याय महिना ભેદ દ્વારા અથવા નામાદિ ભેદ દ્વારા તેની પ્રજ્ઞાપના કરી શકે છે? અથવા સ્વરૂપતઃ તેનું કથન કરી શકે છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- ( णो इणट्ठे समट्ठे ) हे गौतम! नेले ठेवली આઢિ પાસે ધર્મપદેશ શ્રવણ કર્યા વિના કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યું... હાય છે એવા કેવળજ્ઞાની કેવલી દ્વારા પ્રતિપાદિત ધર્માંની પ્રરૂપણા કરી શકતા નથી, તેની પ્રજ્ઞાપના પણ કરી શકતા નથી, અને તે તેનું સ્વરૂપતઃ પ્રતિપાદન કરી શકતા नथी. परन्तु गणत्थ एगणारण वा एग वागरणेण वा તે એક ઉદાહરણ આપી શકે છે અને એક પ્રશ્નને! ઉત્તર આપી શકે છે તે સિવાય તે ધર્મના ઉપદેશ ઈ શકતા નથી 66 "" गौतम स्वामीन। प्रश्न - ( से णं भंते ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा १ ) હે લદન્ત ! શું તે અશ્રુત્વા ડૅવલી પ્રત્રજ્યા અનાશિને રેચલું છે, કે આપીશ श्री भगवती सूत्र : ৩

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