Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 727
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी०० ९ उ०३१ सू०५ अश्रुत्वा केयलिवर्णनम् ७१५ भवन् शब्दापाति-विकटापाति-गन्धापाति-माल्यवन्तपर्यायेषु वृत्तवैताढयपर्वतेषु भवति । संहरणं प्रतीत्य सौमनस्यवने वा, पाण्डुकवने वा भवति, अधो भवन् गर्ने वा, दयाँ वा, भवति, संहरणं प्रतीत्य पाताले वा, भवने वा, भवति, तिर्यग् भवन् पुनः केवलि वक्तव्यता(से णं भंते ! किं उडूं होज्जा अहो होजा) इत्यादि । सूत्रार्थ-(से णं भंते ! कि उड्डूं होज्जा, अहो होज्जा, तिरियं होज्जा) हे भदन्त ! वह अश्रुत्वा केवली क्या उर्ध्वलोक में होता है, या अधोलोक में होता है, या तिर्यक् लोक में होता है ? (गोयमा) हे गौतन! (उर्छ वा होज्जा, अहो वा होज्जा, तिरियं वा होज्जा) वह अश्रुत्वा केवली उर्ध्वलोक में भी होता है, अधोलोक में भी होता है, तिर्यक लोक में भी होता है । ( उड्डूं होज्जमाणे सद्दावह, वियडावइ गंधावइ मालवंत परियाएप्सु वट्टवेय पव्वएसु होज्जा) यदि वह उर्ध्वलोक में होता है तो शब्दापाति, विकटापाति, गंधापाति और माल्यवन्त इन नाम वाले वृत्तवैताढय पर्वतों में होता है तथा (साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा, पंडगवणे वा होज्जा) संहरण की अपेक्षा से वह सौमनस्यवन में या पण्डकवन में होता है । ( अहे होज्जमाणे गड्डाए वा दरीए वा, होज्जा, साहरणं पडच पायाले वा भवणे वा, होज्जा) यदि वह अधोलोक में दीनी विशेष वतव्यता" से णं भंते ! कि उडूढ होज्जा अहो होज्जा " त्याह. सूत्राथ-( से णं भते ! कि उड्ढ होज्जा, अहो होज्जा तिरयं होज्जा १) હે ભદન્ત ! તે અશ્રુત્વા કેવલી શું ઊર્વકમાં હોય છે કે અધોલેકમાં હોય छ, त तियान डाय छे ? (गोयमा !) 8 गौतम ! ( उडूढ' वा होजा, अहो वा होज्जा, तिरिय होजा) ते मश्रुत्वा पक्षी अ भय ५४ हाय छ, अपामा ५ सय छ भने तिय भूभi ५५ य छे. ( उडूढ होज्जमाणे सहावइ, वियडावइ गंधावइ मालवंतपरियाएसु ववेयङ्ढ फव्वएसु होज्जा) aalaswi डाय छ, तो १७४ापति, विपति, वि. ટાપાતિ, ગંધાપાતિ, અને માલ્યવન્ત, આ નામવાળા વૃત્તવૈતાઢય પર્વતેમાં डाय छे तथा ( साहरणं पडुच सोमणसवणे वा, पंडगवणे वा होज्जा ) सह२९नी अपेक्षा ते सौमनस पनमा ५. वनमा सय छे. ( अहे होज श्री. भगवती सूत्र : ७

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