Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 730
________________ ७१८ भगवतीसूत्र गौतम ! अश्रुत्वा केवली ऊर्ध्वम् ऊर्ध्वलोके वा भवति, अधः-अधोलोके वा भवति, तिर्यग्लो के वा भवति । 'उडूं होज्जमाणे सद्दावइ-वियडावइ-गंधावइमालवंतपरियाएसु वट्टवेयड्डपब्बएसु होज्जा' ऊर्ध्वम् ऊर्ध्वलोके भवन् शब्दापातिविकटापाति-गन्धापाति-माल्यवन्तपर्यायेषु एतच्चतुरभिधानेषु वृत्तवैताढयपर्वतेषु भवति । तेषु च चतुर्पु ऊर्ध्वस्थानेषु तस्य अश्रुत्वाकेवलिनः आकाशगमनलब्धिसम्पन्नत्वेन तत्र गतस्य केवलज्ञानोत्पादसद्भावे सति स्थितिः संभवति 'साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा, पंडगवणे वा होज्जा ' संहरणं प्रतीत्य संहरणाहोज्जा) वह अश्रुत्वा केवली उर्ध्वलोक में भी होता है, अधोलोक में भी होता है और तिर्यग् लोक में भी होता है । उड़े होज्जमाणे सद्दावइ, वियडावइ, गंधावइ, मालवंतपरियाएतु वट्टवेयपव्वएसु होज्जा) यदि वह उर्ध्वलोक में होता है तो शब्दापातिवृत्तवैताढय में विकटापातित्तवैताढयमें गन्धापाति वृत्तवैताढयमें या माल्यवन्त वृत्तावताढयमें इन वृत्त वैताढय पर्वतो में होता है। तात्पर्य कहने का यह है कि इन चार ऊर्ध्वस्थानों में अश्रुत्वा केवली का सद्भाव इस तरह से पाया जाता है कि अश्रुत्वा केवली को आकाशगमनलब्धि का सद्भाव तो होता ही हैऐसी स्थिति में आकाशगमन लब्धि की सहायता से आकाश में गमन करते समय यदि उसको केवलज्ञान हो जाता है तो इन स्थानों में उसका सद्भाव वहां स्थिति हो जाने की वजह से पाया जाता है। (साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा पंडगवणे वा होज्जा) संहरण की अपेक्षा से महावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा!" ॐ गौतम! ( उड्ढ होच्जा देवा होज्जा, तिरियं वा होज्जा) ते सश्रुत्वा el erawi ५५ हाय छ, मधासभा ५४ डाय छ भन तिमी ५ डाय छे. ( उड्ढ होजमाणे सहावइ, वियडावइ, गधावइ, मालवंतपरियाएसु वट्टवेयङ्ढपवएसु होज्जा) જે તેઓ ઊáલેકમાં હોય છે, તે શબ્દાપાતિ નામના વૃત્તવૈતાઢયમાં કે વિકટાપતિ નામના વૃત્તવૈતાઢયમાં, કે ગંધાપાતિ વૃત્તવૈતાઢયમાં કે માલ્યવન્ત વૃત્તવૈતાઢયમાં, આ વૃત્તવૈતાઢય પર્વતમાં હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે આ ચાર ઊંસ્થામાં અછુવા કેવલીને સદૂભાવ આ રીતે સંભવી શકે છે અથવા કેવલીમાં આકાશગમનલબ્ધિને સદુભાવ તે અવશ્ય હોય છે. એવી સ્થિતિમાં આકાશગમનલબ્ધિની સહાયતાથી આકાશમાં ગમન કરતી વખતે તેમને કેવળજ્ઞાન ઉત્પન્ન થઈ જાય છે તે સ્થાનમાં તેમને સદૂભાવ त्यांनी स्थितिनी अपेक्षा समयी श छ. (माहरणं पडुच्च सोमणसवणे या पंडगवणे या होज्जा) सरशुनी अपेक्षाय-3 वा वातवें શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૭

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