Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 697
________________ प्रमैयचन्द्रिका टी०N० ९ उ०३१ सू०३ अवधितानिनो लेश्यादिनिरूपणम् ६८५ सत्था ? गोयमा ! पसत्था नो अप्पसत्था । से णं गोयमा ! तेहिं पसत्येहिं अज्झवसाणेहिं वट्टमाणेहिं अणंतेहिंतो नेरइयभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ, अणंतहितो तिरिक्खजो. णियभवग्गहणेहिंतो अप्पाणं विसंजोएइ, अणंतेहितो मणुस्सभवग्गहणेहिंतो अप्पाणं विसंजोएइ, अणंतेहिंतो देवभवग्गहहितो अप्पाणं विसंजोएइ, जाओवि य से इमाओ नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवगइनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ, तासिं च णं उवग्गहिए अणंताणुबंधी कोहमाणमायालोभेखवेइ, अणंताणुबंधी कोहमाणमायालोभे खवित्ता अपच्चक्खाणकसाए को. हमाणमायालोभे खवेइ, अपच्चक्खाणकसाए कोहमाणमायालोभे खवित्ता पच्चक्खाणावरणकोहमाणमायालोभे खवेइ, पच्चक्खाणावरण कोहमाणमायालोभेखवित्ता संजलणकोहमाणमायालोभे खवेइ संजलण कोहमाणमायालोभे खवित्ता पंचविहं नाणावरणिज्जं, नवविहं दरिसणावरणिज्जं, पंचविहं अंतराइयं, तालमत्थाकडं च णं मोहणिज्जं कद्द कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं अणुपविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे निवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ॥ सू० ३ ॥ छाया-स खल भदन्त ! कातेलेश्यासु भवति ? गौतम ! तिसृषु विशुद्धले. श्यासु भवति, तद्यथा-तेजोलेश्यायां पद्मलेश्यायां शुक्ललेश्यायाम् । स खलु भदन्त ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭

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