Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 691
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ. ३१ सू०१ अश्रुत्वाधर्मा देलाभनिरूपणम् ६७९ प्तेन निरन्तराचरितेन तपः-कर्मणा ऊर्ध्ववाहू प्रगृह्य प्रगृह्य धृत्वा धृता सूराभिमुखस्य सूर्यसम्मुखस्थस्य आतापनाभूमौ आतापयतः आतापनां कुर्वतः ‘पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए ' प्रकृतिभद्रतया प्रकृत्या स्वभावेन भद्रः शोभनः श्रेष्ठस्तस्यभावस्तया स्वभावश्रेष्ठतया, प्रकृत्युपशान्ततया प्रकृत्या स्वभावेन उपशान्तः उपशमवान् तस्य भावस्तया शान्तस्वभावतया इत्यर्थः 'पगइपयणुकोहमाणमायालोभयाए ' प्रकृतिमतनुक्रोधमानमायालोभतया-प्रकृत्या स्वभावेन प्रतनवः कृशाः क्रोधमानमायालोमा यस्य तस्य भावस्तया ' मिउमद्दवसंपन्नयाए ' मृदुमार्दवसम्पबतया-अत्यन्तकोमलस्वभावतया ' अल्लीणयाए, भद्दयार, विणीययाए ' आलीनतया आलीन आश्रितः गुरोरनुशासनाभावेऽपि सुभद्रक एव, तस्य भावस्तया, भद्रतया, विनीततया, ' अन्नया कयाई सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं' शुभेन अध्यवसानेन अध्यवसायेनेत्यर्थः शुभेन परिणामेन - लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं विमुज्झमाणीहिं ' लेश्याभिः विशुद्धयमानाभिः विशुद्धयमानाभिः वारं वारं निरन्तरं विशुद्धिपाप्नुवतीभिरित्यर्थः, 'तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं' हुआ है. एवं आतापना भूमि में उर्ध्वबाहु करके जो सूर्य की ओर मुग्व करके आतापना लेना है ( पगइ भद्दयाए, पगह उवमंतयाए ) जो स्वभाव से सरल है, स्वभाव से उपशमवाला है, स्वभाव से जिमकी क्रोध, मान, माया और लोभ कषायें कृश-अल्प हो गई हैं ( अल्लीणयाए, भद्दयाए, विणीययाए ) गुरु के अनुशासन के अभाव में भी जो भद्रक परिणामी होता है, विनय गुण जिसमें अच्छी तरह से भरा हुआ है, ऐसे उस बालतपस्वी जीव को (सुभेणं अज्झवसाणेणं) कि जो शुभ अध्यवसाय (सुभेणं परिणामेणं) एवं शुभ परिणाम द्वारा (लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं २) धीरे २ विशुद्ध बनती जाती अपनी लेश्याओं से પારણે છઠ્ઠની તપસ્યાથી યુક્ત છે, તથા તડકાવાળી ભૂમિમાં ઊર્વ બાહ કરીને भने सूर्य नी त२३ भुभ राभान रे माताना तो डाय छ, ( पगइ भइयाए, पगइ उत्रसंतयाए ) २ स्वभाव स२८ छ, २ ७५३न्त छ, स्यामावि रीत જેના ક્રોધ, માન, માયા અને લેભરૂપ કષા પાતળા પડી ગયેલા છે, (अल्लीणयाए, भदयाए, विणीययाए) शुरुना मनुशासननी मला डापा छतi પણ જે ભદ્રક પરિણામી હોય છે, જેનામાં વિનયગુણ બહુ જ વધારે પ્રમાણમાં २। डाय छ, (सुभेण अज्झवसाणेण, सुभेण परिणामेण) शुभ यासाय भने शुभ परिणाम २ ( लेस्साहिं विसुज्झमाणीहि २) धीरे धीरे विशुद्ध मनती ती पतिथी श्यामाथी रे युत थयेट छे, (तयावरणिज्जाण श्री. भगवती सत्र:७

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