Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 673
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ उ०३१ सू० १ अश्रुत्वाधर्मादिलाभनिरूपणम् ६६१ गौतम ! यस्य खलु जीवस्य चारित्रावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति, स खलु जीवः केवलिनः सकाशाद् वा, यावत् केवलिश्रावकप्रभृतेः सकाशाद् वा ब्रह्मचर्योपदेशमश्रुत्वाऽपि केवलं विशुद्धं ब्रह्मचर्यवासम् आवसेत् , अत्र च वेदलक्षणानि चारित्रावरणीयानि विशेषतो ग्राह्याणि, मैथुनविरतिलक्षणस्य ब्रह्मवर्यवासस्य विशेषतस्तेषामेव आवारकत्वात् । अथ च ' जस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ, से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव नो आवसेज्जा' यस्य खलु जीवस्य चारित्रावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमो नो कृतो भवति, स खलु जीवः केवलिनः सकाशाद् वा, यावत् केवलिश्रावकमभृतेः सकाशात् वा ब्रह्मचर्योपदेशम् अश्रुत्वा केवलं ब्रह्मचर्यवासं नो आवसेत् । ' से तेणटेणं जाव नो चेरवासं आवसेन्जा) जिस जीव के चारित्रावरणीयकर्मों का-चारित्रमोहनीयकर्मों का क्षयोपशम किया हुआ होता है-वह जीव केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से ब्रह्मचर्य का उपदेश नहीं सुन करके भी विशुद्ध ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है, और (जस्स णं चारित्तावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ, से णं असोच्चा केवलि. स्स वा जाव नो आवसेजा) जिस जीव के चारित्रावरणीयकों का क्षयोपशम नहीं होता है, ऐसा वह जीव केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से ब्रह्मचर्य का उपदेश सुने विना ब्रह्मचर्यवास में नहीं रह सकता है। यहां चारित्रावरणीय कर्म से विशेषरूप में वेदरूप चादित्रावरणीयकर्मों का ग्रहण करना चाहिये-क्यों कि मैथुनविरतिरूप ब्रह्मचर्यवास के ये ही विशेषतः आवारक होते हैं। (से तेणटेणं जाव नो आवसेज्जा) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है यावत् जिस केवल बभचेरवासं ऑवसेज्जा) रे ना यास्त्रिावरणीय भनी यात्रि મેહનીય કર્મોને ક્ષપશમ થયેલું હોય છે, તે જીવ કેવલી પાસે અથવા તેમના શ્રાવક આદિ પાસે બ્રહ્મચર્યને ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના પણ શુદ્ધ બ્રહ્મययनतर्नु पालन ४१ श छ, ५२न्तु “ जस्स ण' चरित्तावरणिज्जाण करमाण खओवसमे नो कडे भवइ, से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव नो आवसेज्जा" જે જીવના ચારિત્રાવરણીય કર્મોને ક્ષપશમ થયે હેતે નથી, તે જીવ કેવલી પાસે અથવા તેમના શ્રાવક આદિ સમીપે બ્રહ્મચર્યને ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના બ્રહ્મચર્યવ્રત ધારણ કરી શકતું નથી. અહીં ચારિત્રાવરણીય કર્મથી વિશેષરૂપે. વેદરૂપ ચારિત્રાવરણીય કર્મોને ગ્રહણ કરવા જોઈએ, કારણ કે મિથુન વિરતિરૂપ બ્રહ્મચર્યવ્રતના તેઓ જ આવારક હોય છે. श्री. भगवती सत्र : ७

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