Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे वर्णनम् औपपातिके वर्णितम् चम्पानगरी वर्णनमिवावसेयम् , 'मणिभद्दे चेहए, वण्णओ' मणिभद्रं नाम चैत्यम् आसीत् , वर्णकः, अस्य वर्णनमपि औषपातिकसूत्रोक्तपूर्णभद्रचैत्यवदवसेयम् । 'सामी समोसढे, परिसा निग्गया जाव भगवंगोयमे पज्जुवासमाणे एवं वयासी '-स्वामी महावीरः समवसृतः मिथिलासमागतः। समवसरणवर्णनमपि औपपातिकसूत्रे मत्कृतपीयुषवर्षिणीटीकायां त्रयोविंशतिमूत्रादारभ्य सप्तत्रिंशत्सूत्रपर्यन्तं विलोकनीयम् । पर्षत् निर्गता-भगवन्तं वंदितुं नमस्कर्तुमागता, यावत् नमस्यित्वा प्रतिगता पर्षत् , ततो भगवन्तं महावीरं गौतमः पर्युपासीनः त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपासनां कुर्बाणः सन् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? किं संठिए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? ' हे भदन्त ! कुत्र प्रदेशे खलु जम्बूद्वीपो नाम द्वोपो इसका वर्णन जैसा औपपातिक सूत्र में चम्पानगरी का वर्णन किया गया है वैसा ही जानना चाहिये। ( मणिभद्दे चेइए ) यहां पर " मणिभद्र" इस नाम का यक्षायतन था। (वण्णओ) इसका वर्णन भी औपपातिक सूत्र में वर्णित पूर्णभद्र चैत्य की तरह जानना चाहिये। (मामी समोसढे) महावीर स्वामी वहां पर पधारे। समवसरण का वर्णन भी
औपपातिक सूत्र में मेरे द्वारा की गई पीयूषवर्षिणी टीका में किया गया है जो २३ वें सूत्र से लेकर २७ वें सूत्र तक है। (परिसा निग्गया) भगवान को वन्दना करने के लिये, उन्हें नमस्कार करने के लिये वहां को परिषद् आई यावत् वह वन्दना और नमस्कार कर धर्मकथा सुनकर के वहां से वापिस चली गई बाद में त्रिविध पर्युपासना से पर्युपासना करते हुए गौतम ने उनसे इस प्रकार पूछा-(कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे या नारा १ ४थु छे, मे तेनुं वन सभा'. “ मणिभदे चेइए" त्यां मणिभद्रनामे येत्य (यक्षायतन) तुं. “ वण्णओ" मौ५५.ति સૂત્રમાં જેવું પૂર્ણભદ્ર શૈત્યનું વર્ણન કર્યું છે, એવું જ તેનું વર્ણન સમજવું. " सामी समोसढे" त्यो महावीर स्वाभी पधार्या. समवसरणतुं न पश ઔપપાતિક સૂત્રની મારા દ્વારા લખાયેલી પીયૂષવર્ષિણી ટીકામાં ૨૩ થી ૨૭ संधाना सूत्रामा माया प्रमाणे समा.. " परिसा निग्गया" मापानने વંદણું નમસ્કાર કરવા માટે ત્યાંની જનતા ( પરિષદ ) ત્યાં આવી. વંદણું નમસ્કાર કરીને તથા ધર્મોપદેશ સાંભળીને પરિષદ વિખરાઈ ગઈ. ત્યાર બાદ ત્રિવિધ પપાસનાપૂર્વક પર્ય પાસના કરીને ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર प्रभु या प्रमाणे ५७\-( कहिण भते ! जंबुद्दोवे दीवे ? किं संठिए णं भते !
श्री. भगवती सूत्र : ७