Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे द्वयणुकस्कन्धतामनापद्य द्रव्यान्तरेण सम्बधीपगतौ सत्यां द्रव्यदेशौ भवतः४, एवं स्यात् कदाचित् तयोरेकस्य केवलतया स्थितौ द्वितीयस्य च द्रव्यान्तरेण सम्बन्धे सति तयोरेवैको द्रव्यञ्च, अपरश्च द्रव्यदेशवेति५ पञ्चमो विकल्पः, शेषविकल्पत्रयस्य तु प्रतिषेधोऽसंभवात् , इत्यभिप्रायेणाह-'नो दव्वं च दबदेसा य ६' तौ द्वौं नो द्रव्यश्च द्रव्यदेशौ भवतः, तदाह-' सेसा पडि से हेयब्बा ' शेषाः अन्तिमात्रयः प्रतिषेद्धव्याः तत्र षष्ठस्य पतिषेधः कृत एवं, सप्तमाष्टमयोः प्रतिषेधस्तु- तौ नो नहीं कर के द्रव्यान्तर के साथ सम्बन्धित होते हैं-उस स्थिति में वे दो द्रव्यदेशरूप से कहे जाते हैं। तथा जब उन दोनों प्रदेशों में से एक प्रदेश स्वतन्त्र रहता है और एक दूसरा प्रदेश द्रव्यान्तर के साथ जुड़ जाता है, उस स्थिति में एक द्रव्यरूप और दूसरा द्रव्यदेशरूप हो जाता है ५। इस तरह से पांच विकल्प यहां मान्य किये गये हैं। इनके अतिरिक्त तीन विकल्प यहां मान्य नहीं किये गये हैं। क्यों कि इन तीन विकल्पों की यहां संभावना असंभावित है। इसी अभिप्राय को लेकर (नो व्वं य दव्वदेसा य ६, सेसा पडिसे हे. यवा) ऐसा कहा गया है। (नो दव्वं य दव्यदेसा २ ) यह छठा विकल्प है। तथा 'ना दव्वाइं य दव्वदेसे य ७, नो दवाइं य दव्वदेसा य ८,' सातवें और आठवें हैं। ऐसे यों क्यों नहीं होते हैं-इस विषय में पहिले युक्ति प्रदर्शित की जा चुकी है। अर्थात् पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश एक ही समय में द्रव्यरूप और द्रव्यदेशरूप हो जावें यह बात नहीं बन તર (અન્ય દ્રવ્ય) ની સાથે સંબંધિત હોય છે, ત્યારે તેઓ બે દ્રવ્યદેશરૂપ માની શકાય છે. તથા જ્યારે તે બે પ્રદેશોમાંથી એક પ્રદેશ સ્વતંત્ર રહે છે અને બીજે પ્રદેશ અન્ય દ્રવ્યની સાથે મળી જાય છે, ત્યારે ( એવી સ્થિતિમાં) એક દ્રવ્યરૂપ અને બીજે દ્રવ્યદેશરૂપ બની જાય છે. આ રીતે પાંચ વિકલ્પને અહીં સ્વીકાર કરવામાં આવેલ છે. બાકીના ત્રણ વિકલને અહીં સ્વીકાર કરવામાં આવ્યું નથી, કારણ કે તે ત્રણ વિકપની સંભાવના અહીં અસંભवित आरणे सूत्रधारे ४ह्यु छ है ( नो दवच दव्वदेसा य, सेसा पडिसडेयब्वा ) अटो छ, सातमा मने मामा विपन! मह सवा ४१२ ४२वामा माव्य। छे. ७४ो वि४६५ मा प्रभारी छ-" नो दवच, दबदेसा य" सातमा वि४८५ मा प्रमाणे छ-" नो व्वाईच दव्वदेसे य" 18 वि४६५
॥ प्रभारी छ-'नो व्वाईच दब्वदेसा य" मा ४ि६पानी मस्वी॥२ ४२વાનું કારણ આગળ આપી દેવામાં આવ્યું છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પુદ્ગલાસ્તિકાયના બે પ્રદેશ એક જ સમયે દ્રવ્યરૂપ અને દ્રવ્યદેશરૂપ બની જાય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭