Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ०१० सू० १ शीलश्रुतादिनिरूपणम् ४५१ सम्पन्नः ४, तत्र खलु यः स प्रथमः पुरुषजातः, स खलु पुरुषः शीलवान् अश्रुतवान् , उपरतः, अविज्ञातधर्मा, एष खलु गौतम ! मया पुरुषो देशाराधकः प्रज्ञप्तः१, तत्र खलु यः द्वितीयः पुरुषजातः स खलु पुरुषः अशीलवान् श्रुतवान् , अनुपरतो विज्ञातधर्मा, एष खलु गौतम ! मया पुरुषो देशविराधकः प्रज्ञप्तः२, तत्र खलु यः स तृतीयः पुरुषजातः, स खलु पुरुषः शीलवान् श्रुतवान् , उपरतो विज्ञातधर्मा, एष सुयसंपन्ने वि ३, एगे णो सीलसंपन्ने, नो सुयसंपन्ने ४) एक शीलसंपन्न होता है, पर श्रुतसंपन्न नहीं होता १, दूसरा श्रुतसंपन्न होता है पर शीलसंपन्न नहीं होता है २, तीसरा-शील संपन्न भी होता है और श्रुत संपन्न भी होता है ३, और चौथा ऐसा होता है जो न शीलसंपन होता है और न श्रुतसंपन्न होता है । (तत्थ णं जे से पढमे पुरिसे जाए, से णं पुरिसे सीलवं असुयवं, उवरए, अविनायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते) इनमें जो प्रथम प्रकार का पुरुष है वह शील वाला तो होता है परन्तु श्रुत वाला नहीं होता है। ऐसा यह पुरुष पापादिक से उपरत-निवृत्त होता हुआ भी धर्म को जानता नहीं है। हे गौतम ! ऐसे पुरुष को मैंने देश आराधक कहा है। (तस्थ णं जे से दोच्चे पुरिसजाए, से णं पुरिसे असीलवं सुयवं, अणुवरए विनायधम्मे -एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते) जो दूसरा पुरुष है, वह शीलवाला तो नहीं होता है, परन्तु श्रुतवाला होता है ऐसा यह पुरुष पापादिक से तो अनिवृत्त होता है, पर धर्म को जानता है। हे वि सुयसंपन्ने वि एगे णो सीलसंपन्ने, णो सुयसंपन्ने४,) (१) aयुत सय છે પણ જ્ઞાનયુક્ત હોતે નથી, જ્ઞાનયુક્ત હોય છે પણ શીલયુક્ત હેતે નથી, (૩) શીલયુક્ત પણ હોય છે અને જ્ઞાનયુક્ત પણ હોય છે, (૪) શીલયુક્ત ५५ डरता नथी मने शानयुश्त ५५ डात नथी. ( तत्थर्ण जे से पढमे पुरिसे जाए, से णं पुरिसे सीलवं असुयवं, उवरए, अविनायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देखाराहए पण्णत्ते ) तयार प्रा२ना पुरुषोमाथा पहेसा मारना પુરુષ છે તે શીલવાળે તે હોય છે પણ કૃતવાળે હેતે નથી. એ તે પુરુષ પાપાદિકથી નિવૃત્ત રહેવા છતાં પણ ધર્મને જાણતા નથી. હે ગૌતમ! એવા पुरुषने में देश (मत: ) भाराध हो छ. ( तत्थ णं जे से दोच्चे पुरिसः जाए, से णं पुरिसे असीलवं सुयवं, अणुवरए विनायधम्मे-एस गं गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहए पण्णते) भी प्रारने २ पुरुष छ ते शी सवाणे હોતું નથી પણ શ્રતવાળો હોય છે. એ તે પુરુષ પાપાદિકથી અનિવૃત્ત હોય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭