Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ० ९ सू. ९ कार्मणशरीरप्रयोगबन्धवर्णनम् ३९७ शरीरप्रयोगपृच्छा, तथा च तिर्यग्योनिकायुष्ककार्मणशरीरमयोगबन्धः कस्य कर्मण उदयेन भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! माइल्लियाए, नियडिल्लियाए अलियवयणेणं, कूडतुलकूडमाणेणं तिरिक्खजोणियकम्मा-सरीर-जाव-प्पओग बंधे' हे गौतम ! मायिकतया-परवश्चनरूपलक्षणया बुद्धिमत्तया, १ निकृतिम. त्तया, निकृतिः परवश्वनाथ चेष्टा तया, एकमायाप्रच्छादनाथै मायान्तरकरणरूपया गूढमायिकतयेत्यर्थः २, अलीकवचनेन-असत्यभाषणेन ३, कूटतुलाकूटमानेन कूटतुलया-असत्योन्मानेन तुलादिना असत्यतोलनेनेत्यर्थः ४, एवं कूटमानेन विक्रेयवस्त्रक्षेत्रादीनामसत्यपरिमापनेन तिर्यग्योनिकायुष्ककार्मणशरीर-यावत्-प्रयोगनामकर्मणः उदयेन तिर्यग्योनिकायुष्ककार्मणशरीरपयोगबन्धो भवतीति भावः । गौतमः पृच्छति-' मणुस्सआउयकम्मा सरीरपुच्छा' हे भदन्त ! मनुष्यायुष्ककार्मणशरीरपृच्छा तथा च मनुष्यायुष्ककार्मणशरीरप्रयोगवन्धः कस्य कर्मणः उदयेन प्रयोग का बंध किस कर्म के उदय से होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! (माइल्लियाए, नियडिल्लियाए, अलियवयणेणं, कूडतुलकूडमाणेणं, तिरिक्खजोणिय कम्मासरीर जावप्पओ. गबंधे ) परवंचनरूप बुद्धिमत्ता से, पर को बंचन करने की चेष्टा से-एक माया को छिपाने के लिये दूसरी माया को करने रूप गूढमायाचारी से, असत्यभाषण से, नापने तोलने के बांटों को कमती बढती रखने से और तिर्यग्योनिकायुष्क कार्मणशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से जीव को तिर्यग्योनिकायुष्क कार्मणशरीरप्रयोग का बंध होता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(मणुस्साउय कम्मासरीरपुच्छा) हे भदन्त ! मनुष्यायुष्ककार्मण शरीर प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गायमा' हे
महावीर प्रभुन। उत्तर-“ गोयमा" गौतम ! (माइल्लियाए, नियः डिल्लियाए, अलियवयणेण, कूडतुलकूडमाणेण, तिरिक्खजोणियकम्मा सरीर जाव पओगबंधे) ५२० यन३५ मुद्धिभत्ताथी, ५२नी वयना ४२वानी यहाथी એક માયા (કપટ) ને છુપાવવા માટે અને બીજી માયા (કપટ) ના આચરણરૂપ ગૂઢ માયાચારીથી, અસત્ય વચનથી, ખેટાં તેલ માપ કરવાથી અને તિર્યચનિકાયુષ્ક કામણ શરીર પ્રયોગ નામક કર્મના ઉદયથી જીવ તિર્યચનિકાયુષ્ક કાર્મણ શરીર પ્રગને બંધ કરે છે.
गौतम स्वाभाना -" मणुस्साउयकम्मा सरीरपुच्छा " मन्त! મનુષ્યાયુષ્ક કાર્મણ શરીર પ્રગબંધ કયા કમના ઉદયથી થાય છે?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭