Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिकाटो०२०८७०९ सू०१० औदारिकादिबन्धस्य परस्परसम्बन्धनि० ४३५ कार्मणशरीर देशबन्धको जीवः किम् औदारिकशरीरस्य बन्धको भवति ? अबन्धको वा भवति ! भगवानाह-'जहा तेयगस्स वत्तव्यया भणिया, तहा कम्मगस्स वि भाणियव्वा, जाव तेयासरीरस्स जाव देसबंधए, नो सबबंधए ' हे गौतम ! यथा तैजसस्य शरीरस्य वक्तव्यता-" देशबन्धको वा, सर्ववन्धको वा, अबन्धको वा" इत्यालापक्रमेण भणिता तथैव कार्मणस्यापि शरीरस्य बन्धको जीवः औदारिकशरीरस्य देशबन्धको वा, सर्वबन्धको वा, अबन्धको वा भवतीति वक्तव्यता भणितव्या यावत् कार्मणदेशबन्धका आहारकशरीरस्य देशबन्धकः, सर्वबन्धकः, अबन्धकश्च भवति, एवमेव कार्मणशरीरदेशबन्धकः वैक्रियशरीरस्य देशबन्धका पंधए अबंधए) हे भदन्त ! जिस जीव के कार्मण शरीर का देशबंध होता है-ऐसा वह कार्मणशरीरका देशबंधक जीव क्या औदारिकशरीर का बंधक होता है या अपंधक होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं(जहा तेयगस्स वत्तब्धया भणिया, तहा कम्मगस्स वि भाणियव्वा, जाव तेयासरीरस्स जाव देसबंधए, सवय धए ) हे गौतम ! जैसे तैजसशरीर की वक्तव्यता "औदारिक शरीर का वह देशबंधक भी होता है, सर्वबंधक भी होता है और अबंधक भी होता है " इस आलापक्रम से कही गई है उसी प्रकार से कार्मणशरीर का भी बंधक जीव औदारिकशरीर का देशबंधक भी होता है, सर्वबंधक भी होता है और अबंधक भी होता है ऐसा कथन जानना चाहिये । इसी तरह से कार्मः णशरीर का देशबंधक जीव वैक्रियशरीर का देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक होता है। किन्तु कार्मणशरीर का देशबंधक जीव तैजसशरीर सरीरस्स बधए, अबंधए ? ) 3 महन्त ! २ ०१ मा शरीर देश હોય છે, તે શું દારિક શરીરને બંધક હોય છે, કે અબંધક હોય છે ?
महावीर प्रभुने। उत्तर-" जहा तेयगस्स वत्तव्वया भणिया, तहा कम्मगस वि भाणियव्या, जाव तेयासरीरस्स जाव देसबधए, नो सबबंधए ". ગૌતમ ! જે પ્રમાણે તૈજસ શરીરની વક્તવ્યતા “ઔદારિક શરીરને તે દેશબંધક પણ હોય છે, સર્વબંધક પણ હોય છે, અને અબંધક પણ હોય છે.” આ આલાપકમથી કહેવામાં આવી છે, એ જ પ્રમાણે કાર્મણશરીરને બંધક જીવ પણ દારિક શરીરને દેશબંધક પણ હોય છે, સર્વબંધક પણ હોય છે અને અબંધક પણ હોય છે, એવું કથન સમજવું. એજ પ્રમાણે કામણ શરીરને દેશબંધક જીવ વૈકિય શરીરને અને આહારક શરીરને દેશબંધક, સર્વબંધક અને અધક હોય છે. પરંતુ કામણ શરીરને દેશબંધક જીવ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭