Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
३७०
भगवतीसूत्रे तैजसशरीरप्रयोबन्धः खलु देशबन्ध एव भवति, नो सर्वबन्धो भवति, तैजसशरीरस्य अनादित्वात् न सर्ववबन्धोऽस्ति, सर्वबन्धस्य प्रथमतः पुद्गलोपादानरूपतया अनादेस्तैजसशरीरस्य तदसंभवात् इतिभावः, गौतमः पृच्छति- तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कालो केबच्चिरं होइ ? हे भदन्त ! तैजसशरीरप्रयोगवन्धः खलु कालत: कालापेक्षया कियच्चिर भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! तैजसशरीरप्रयोगबन्धो द्विविधः पज्ञप्तः, 'तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए ' तद्यथा-अनादिको वा अपर्यवसितः, अनादिको वा सपर्यवसितः, तत्र अभव्यानाम् अनादिकोऽपर्यवसितस्तैजसशरीरप्रयोगबन्धः, रूप नहीं है। क्यों कि "अनादि सम्बन्धे च" सूत्रानुसार यह तेजस शरीर जीव के साथ अनादिकाल से संबंधित है। प्रथम समय में पुद्गलोपादानरूप होने से अनादि तैजसशरीर में इस सर्वबंध का होना असंभव है। __ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं भवइ ) हे भदन्त ! तैजससरीरप्रयोगबंध काल की अपेक्षा कबतक रहता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (दुविहे पण्णत्ते) तैजसशरीरप्रयोगबंध दो प्रकार का कहा है (तं जहा ) जो इस प्रकार से है-(अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए ) अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित इनमें से अनादि अपर्यवसित जो तैजसशरीरप्रयोगबंध है वह अभव्यजी. ४॥२५ है " अनादिसम्बधे च ' 20 सूत्रानुसार ॥ तैस शरी२ जना સાથે અનાદિ કાળથી સંબંધિત છે. પ્રથમ સમયમાં તે પુપાદાન રૂપ હેવાથી તૈજસ શરીરમાં સર્વબંધને સદૂભાવ અસંભવિત છે.
गौतम स्वामीना प्रश्न-( तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिर' भवइ १) महन्त ! तेस शरी२ प्रयोग जनी अपेक्षा यां સુધી રહે છે?
मडावीर प्रभुना उत्तर-“गोयमा " 3 गौतम ! “ दुविहे पण्णत्ते" तरस शरी२ प्रयास मे प्रा२ने। धो छ- जहा" ते प्रा। નીચે પ્રમાણે છે
( अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए) (१) मना अ५यवसित (मना मनत), (२) अनादि सपय सित (मना सन्त).
શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૭.