Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___भगवतीसूत्रे यिकस्य । एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां ज्ञानावरणीयस्य कर्मणो देशबन्धकानाम् अबन्धकानां च कतरे कतरेभ्यो यावत् अल्पबहुत्वं यथा तेजसस्य, एवम् आयुष्यवर्ज यावत् अन्तरायिकस्य, आयुष्यस्य । पृच्छा, गौतम ! सर्वस्तोका जीवाः आयुष्यस्य कर्मणो देशबन्धकाः, अबन्धकाः संख्येयगुणाः ॥ ९ ॥ सान्त कहा गया है। जिस तरह से तैजसशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कहा गया है-उसी तरह से यहां पर भी कहना चाहिये। इसी तरह से यावत् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध का अंतर जानना चाहिये। (एएसि णं भंते ! जीवाणं णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स देसबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो जाव) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म के देशबंधक और अबंधक जीवों में से कौन जीव किन जीवों की अपेक्षा यावत् विशेषाधिक हैं ? ( अप्पाबहुगं जहा तेयगस्स एवं आउयवज्जं जाव अंतराइयस्स) हे गौतम । जैसा तेजसशरीर का अल्प बहुत्व कहा गया है, उसी तरह से यहां पर भी जानना चाहिये । इसी तरह से आयुष कर्म के सिवाय यावत् अन्तरायकर्मतक जानना चाहिये। (आउयस्सपुच्छा) हे भदन्त ! आयुषकर्म के देशबंधक और अबन्धक जीवों में से कौन जीव किनकी अपेक्षा यावत् विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) गौतम ! (सम्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबं. धगा, अबंधगा संखेज्जगुणा) सब से कम जीव आयुकर्म के देशबंधक हैं और इन देशबंधकों से संख्यातगुणें जीव आयुकर्मके अबंधक जीव हैं। પ્રમાણે તૈજસશરીરોગબંધનું અંતર કહ્યું છે, એજ પ્રમાણે અહીં પણ કહેવું. જોઈએ. એ જ પ્રમાણે અંતરાય પર્યન્તના કાર્માણશરીરપ્રબંધનું અંતર सभा. (एएसिंणं भंते ! जीवाणं णाणावरणिजस्स देसबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहिता जाव) महन्त ! ज्ञानावरणीय भन देशम सने समधीमा કોણ કોના કરતાં અલ્પ છે ? અધિક છે ? સમાન છે ? અને વિશેષાધિક છે ?
(अप्पाबहुगं जहा तेयगस्स एवं आउयवज्जं जाव अंतराइयस्स ) गौतम ? તેજસ શરીરના અલ્પ બહત્વનું જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રકારનું थन मायुम सिवायन मन्त२।५ ५-तना विष समन ( आउयस्स पुच्छा) 3 महन्त ! आयुभना धसने मम वाभा जाना २ti A६५ छ १ अघि छ ? समान छ ? विशेषाधि छ ? (गोयमा !)
गौतम ! (सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मरस देसबंधगा, अबंधगा संखेज्जगुणा) આયુકર્મના દેશબંધક જીવો સોથી ઓછાં છે, અને આયુકર્મના અબંધક છ દેશબંધકે કરતાં સંખ્યાત મણું છે,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭